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सम्धशानचन्द्रिका भाषाटोका j याका वर्ग दोय सै छप्पन का धन सो चौथा स्थान । बहुरि पट्ठी का घन पांचवां स्थान । बादाल का धन छठा स्थान । जैसे पहला-पहला स्थानक का वर्ग कीए एकएक स्थान होइ, सो असे संख्यात स्थान गए जघन्य परीतासंख्यात का धन होइ । यात संख्यात स्थान गए पाबली का धन होइ। यातै एक स्थान गए प्रतरावली का . धन होइ । याते असंख्यात असंख्यात स्थान गए क्रम ते पल्य की वर्ग शलाका का छन
अर अर्थच्छेद का धन पर वर्गमूल का धन होइ । यात एक स्थान गए पल्य का धन होइ । बहुरि याते असंख्यात स्थान गए धनागुल होइ । यात असंख्यात स्थान भए जगच्छे रणी होइ । यात एक स्थान गए जगत्प्रतर होइ। याते अनंतानंत-अनंतानंत स्थान गए क्रम ते जीवराशि की वर्गशलाका का घन अर अर्धच्छेद का धन अर वर्गमल का धन होई। यात एक स्थान गये जीवराशि का घन होइ । यात अनंतानंत स्थान गए श्रेणीरूप सर्व आकाश की वर्गशलाका का धन होइ । तातै अनंतानंत वर्ग स्थान जाइ, ताही का अर्धच्छेद का धन होइ । ताते अनंतानंत ' बर्गस्थान जाइ, ताही का प्रथम मूल का धन होइ । तातै एक स्थान जाइ श्रेणी प्रकाश का धन होइ, सोई सर्व प्रकाश के प्रदेशनि का परिमाण है ।
बहुरि याते अनंतानंत स्थान पर केवलज्ञान कालीम गर्नशूल का न होइ, सो याही कौं अंत स्थान जानना । प्रथम वर्गमूल अर द्वितीय वर्गमूल कौं परस्पर गुणे जो परिमाण होइ, सोई द्वितीय वर्गमूल का धन जानना । जैसे सोलह का प्रथम वर्गमल च्यारि, द्वितीय वर्गमल दोय, याका परस्पर गगन कीए पाठ होइ, सोई द्वितीय वर्गमूल जो दोय, ताका धन भी आज ही होइ, बहुरि द्वितीय वर्गमूल के अनंतरि वर्ग केवलज्ञान का प्रथम मूल, ताका धन कीए केवलज्ञान ते उलंघन होइ, सो केवलज्ञान से अधिक संख्या का प्रभाव है, तातें सोई अंत स्थान कह्या । या धारा के सर्वस्थान दोय घाटि केवलज्ञान की वर्मशलाका मात्र जानने । द्विरूपवर्गधारा विषं जिस राशि का जहां वर्ग ग्रहण कीया. तहां तिसका धन इस धारा विष जानना । बहुरि दोय रूप का घन कर जो धन, ताकौं आदि देकरि पहला-पहला स्थान -का वर्ग करते जो संख्या विशेष होइ, ले जिस धारा विर्षे पाइये, सो द्विरूप धनाधनधारा है । सो दोय का धन पाठ, ताका घन पांच से बारा, सो याका आदि स्थान जानना । बहुरि याका वर्ग दोय लाख बासठि हजार एक सौ चवालीस (२६२१४४), सो याका दूसरा स्थान जानना । अस ही पहला-पहला स्थान का वर्ग करते याके स्थान होंहि । असे असंख्यात वर्ग स्थान गये लोकाकाश के प्रदेशनि का परिमाण