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सम्मानका भाषाढीका
। २४५ देकर चालीस पर्यंत घनमूल के स्थान है; जाते चालीरा का घन कोए चौंसठि हजार होइ, सो आसन्न घन जानना । जाते इकतालीस का धन कीजिए, तो बड़सठि हजार नव से इकबीस होइ, सो केवलज्ञान के परिमाण सौं बधता होइ, सो संभव नाही। तातें केवलज्ञान के नीचें जो परिमाण घनरूप होइ, ताकों केवलज्ञान का आसन्न धन कहिए । इस प्रासन धन का जो घनमल, ताका जो परिमाण, तितने इस धारा के . स्थान जानने।
कोउ कहै कि केवलज्ञान के अर्धपरिमारण कौं धनस्थान तुम कैसे जान्या ?
ताका समाधान -- द्विरूप वर्गधारा के जे स्थान कहेंगे, तिनि विर्षे पहिला, तीसरा, पांचवा नैं प्रादि देकरि जे विषम स्थान हैं, तितिका तौ चौथा भाग परिमाण घनधारा का स्थान जानना । जैसे द्विरूप वर्गधारा का पहिला स्थान च्यारि, ताका चौथा भाग एक, सो धनधारा का स्थान है । बहुरि तीसरा स्थान दोय से छप्पन, ताका चौथा भाग चौसठि, सो घनधारा का स्थान है, असा सर्वत्र जानना । बहुरि जे दूसरा, चौथा, छठा नैं आदि देकरि समस्थान हैं, तिनिका अाधा प्रमाण धनस्थान जानना । जैसे दूसरा स्थान सोलह, ताका आधा आठ, सौ बनधारा का स्थान है । चौथा स्थान सठि हजार पांच से छत्तीस, ताका प्राधा बत्तीस हजार सात सै अडसठि, सो भी घनस्थान हैं। यातें यह केवलज्ञान भी द्विरूप वर्मधारा के समस्थान विर्षे है, ताते याका प्राधा परिमाण कौं घनस्थान कहा।
बहुरि प्रश्न - जो केवलज्ञान को द्विरूप वर्गधारा के समस्थान विर्षे कैसे जान्या ?
ताका समाधान - केवलज्ञान की वर्गालाका का भी परिमाण द्विरूप वर्गधारा के ही विर्षे कहा है अर द्विरूप वर्गधारा के जे स्थान हैं, तिनि विष प्रमाण समरूप ही है, तातै जानिए है । असे धनधारा कही ।..
बहुरि जिस विषं घनरूप संख्या विशेष न पाइए, सो अपनधारा है । सर्वधारा विर्ष जे स्थान हैं, तिनि विर्षे अनधारा के स्थान घटाए अवशेष सर्वस्थान इस धारा के जानने । याका प्रथम स्थान दोय, दूसरा स्थान तीन, इत्यादिक केवलज्ञान पर्यन्त जानना । याके सर्वस्थान बनधारा के स्थान का परिमारण करि हीन केवलज्ञान परिमाण जानने । ..