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सम्यग्ज्ञानचन्दिका भाषाटोका !
उदयाबली का द्वितीय समय संबंधी द्वितीय निषेक का प्रमाण प्राव है। जैसे ही क्रम तें उदयावली का अंत निषेक पर्यन्त एक-एक घय घटाए, एक धाटि पावली प्रमाण चय उदयावली का प्रथम निषेक विर्षे घटें उदयाबली का अंत का निषेक का प्रमाण हो है । याकौं अंकसंदृष्टि करि व्यक्ति करिए है।
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जैसे उदयावली विषं दीया द्रव्य दोय सै; बहरि गच्छ प्रावली, ताका प्रमाण आठ, बहुरि एक-एक गुणहानि विर्षे जो निषेकनि का प्रमाण सो गुणहानि का मायाम, ताका प्रमाण पाठ, याकौं दूणा कीए. दो गुणहानि का प्रमाण सोलह, तहाँ सर्वद्रव्य दोय से कौं प्रावली प्रमाण गच्छ पाठ का भाग दीए पचीस मध्यधन का प्रमाण होइ । याकौं एक घाटि प्रावली का प्राधा सादा तीन, सो निषकहार सोलह में घटाए साढ बारा, ताका भाग दीए दोय पाए, सो चय का प्रमाण, जानना । याकौं दोगुणहानि सोलह, ताकरि गुरणे, बत्तीस पाए, सो प्रथम निषेक का प्रमाण है । यामैं एक-एक चय घटाए द्वितीयादि निषेकनि का तीस आदि प्रमाण हो है । असे एक धादि प्रावली प्रमाण चय के भये चौवह, ते प्रथम निषेक विर्षे घटाए, अवशेष अठारह अंत निषेक का प्रमाण हो है । इनि सर्वनि कौं जोडे ३२, ३०, २८, २६, २४, २२, २०, १८ दोय सै (२००) सर्वद्रव्य का प्रमाण हो है। असें ही अर्थसंदृष्टि करि पूर्वोक्त यथार्थ स्वरूप अवधारण करना ।...
बहरि यात परै उदयावली काल पीछे अंतर्मुहर्तमात्र जो गुणश्रेणी का पायाम कहिए काल प्रमाण, ताविर्षे दीया हुवा द्रव्य, सो तिस काल का प्रथमादि समय विर्षे जे पूर्व निषेक थे, तिनकी साथि क्रम ते असंख्यातगुणा-असंख्यातगुणा होई निर्जर है । सो गुणश्रेणी निर्जरा का द्रव्य असंख्यात लोक का भाग दीए बहुभाग प्रमाण था, सो सम्यक्त्व की उत्पत्तिरूप करणकाल संबंधी गुणश्रेणी का प्रायाम अंतर्मुहूर्तमात्र, तिसविर्षे असंख्यात-असंख्यात गुणी अनुक्रम करि निषेक रचना करिए है।
- इहां सम्यक्त्व की उत्पत्ति संबंधी गुणश्रेणी का कथन मुख्य कीया, तातै तिस ही के काल का ग्रहण कीया है । तहां 'प्रक्षेपयोगोद्धतमिश्रपिंडः प्रक्षेपकारणां गुणको भषेविति' इस करण सूत्र करि प्रक्षेप जो शलाका, तिनिका जो योग कहिए जोड, ताकरि उद्धृत कहिए भाजित, असा जो मिथपिड कहिए मिल्या हुवा द्रव्य का जो प्रमाण, सो प्रक्षेप कहिए । अपनी-अपनी शलोकनि का प्रमारण, ताका गुणक कहिए
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