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सम्मकि भावाटका ]
उदय श्रविरोधी है । बहुरि तैसे ही बस नाम कर्म सहित स्थावर सूक्ष्म-साधारण नाम कर्म का उदय विरोधी है, अन्य कर्म का उदय अविरोधी है । बहुरि स्थावर नाम कर्म सहित यस नाम कर्म का उदय एक ही विरोधी है, अवशेष कर्म का उदय
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विरोधी है । बहुरि बादर नाम कर्म सहित सूक्ष्म नाम कर्म का उदय विरोधी है, अवशेष प्रकृतिनि का उदय प्रविरोधी है । बहुरि सूक्ष्म नाम कर्म सहित त्रस बादर नाम कर्म का उदय विरोधी है, अवशेष कर्म का उदय श्रविरोधी है । बहुरि पर्याप्त नाम कर्म सहित अपर्याप्त नाम कर्म का उदय विरोधी है, अवशेष सर्व कर्म का उदय
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विरोधी है । बहुरि अपर्याप्त नाम कर्म का उदय सहित पर्याप्त नाम कर्म का उदय विरोधी है, अवशेष सर्व कर्म का उदय श्रविरोधी हैं । बहुरि प्रत्येक शरीर नाम कर्म का उदय सहित साधारण शरीर नाम कर्म का उदय विरोधी है, अवशेष कर्म का उदय विरोधी है । बहुरि साधारण शरीर नाम कर्म का उदय सहित प्रत्येक शरीर नाम कर्म का उदय र स नाम कर्म का उदय विरोधी है; अवशेष कर्म का उदय विरोधी है । जैसे विरोधी प्रकृतिनि का उदय करि निपजे जे सदृश परिणामरूप धर्म, ते जीवसमास हैं; असा जानना ।
संक्षेप करि जीवसमास के स्थानकवि कौं प्ररूप हैं -
बादर सूक्ष्मकेंद्रियद्वित्रिचतुरिन्द्रियासंज्ञिसंज्ञिना । पर्याप्तपर्याप्ता एवं ते चतुर्दश भवंति ॥७२॥
बारहमेविय, बितिचउरिदिय असण्णिसणी ध । पज्जत्तापज्जत्ता, एवं ते चोदवसा होंति ॥७२॥
स्वप्तेजोवायु नित्यचतुर्गतिनिगोदस्थूलेतराः ।
प्रत्येक प्रतिष्ठेतराः श्रपंच पूर्णा श्रपूर्णद्विकाः ॥७३॥
टीका - एकेंद्रिय के बादर, सूक्ष्म ए दोय भेद । बहुरि विकलत्रय के द्वींद्रिय, त्रींद्रिय, चतुरिंद्रिय ए तीन भेद । बहुरि पंचेंद्रिय के संज्ञी, असंज्ञी ए दोय भेद, जैसे सात जीवभेद भए । ये एक एक भेद पर्याप्त, अपर्याप्त रूप हैं । जैसे संक्षेप करि चौदह जीवसमास हो हैं ।
आगे विस्तार तैं जीवसमास की प्ररूपै हूँ -
भूआ उसेउवाऊ, णिच्चचदुग्गविणिगोदधूलिंदरा | पत्तेयपविट्ठिवरा, तसपरण पुण्णा अण्णढुंगा ॥७३॥
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