________________
[ गोम्टसार जीवकान्ड गाथा ८२-८३
११२
उपजें है । बहुरि अवशेष वंशपत्रयोनि विषै अवशेष जन उपजे हैं; तीर्थंकरादि नाहीं.
उपजें हैं ।
जन्मभेदन का निर्देश पूर्वक गुणयोनि निर्देश करें हैं
—
जम्मं खलू संमुच्छण, गन्भुवबादा' बु होदि तज्जोरणी । eferenciesसेर मिस्सा २ य पतयं ॥ ८३ ॥
जन्म खलु संमूर्छनगर्भोपपादास्तु भवति तद्योनयः । सचित्तशोतसंवृतसेत रमिश्राश्र प्रत्येकं ॥ ८३ ॥
टीका सम्मूर्तन, गर्भज उप्पाद तीन संसारी जीवनि के जन्म के भेद हैं । सं कहिए समस्तपनें करि मूर्छनं कहिए जन्म धरता जो जीव, तार्कों उपकारी असे जे शरीर के आकारि परिणमने योग्य पुद्गलस्कंध, तिनिका स्वयमेव प्रकट होना, सो सम्मूर्च्छन जन्म है ।
बहुरि जन्म धरता जीव करि शुक्र- शोणितरूप पिंड का गरणं कहिए अपना शरीररूप करि ग्रहण करना, सो गर्भ है । बहुरि उपपावनं कहिए संपुट शय्या वा उष्ट्रादि मुखाकार योनि विषं लघु अंतर्मुहूर्त काल करि ही जीव का उपजना, सो उपपाद है । * तीन प्रकार जन्म भेद हैं ।
भावार्थ - माता-पितादिक का निमित्त विना स्वयमेव शरीराकार पुद्गल कर प्रकट होने करि जीव का उपजनाः सो सम्मूर्छन जन्म है ।
बहुरि माता का लोही पर पिता का वीर्यरूप पुद्गल का शरीररूप ग्रहण करि जीव का उपजना, सो गर्भ जन्म है । बहुरि देवनि का संपुट शय्या विषे, नारकीनि का उष्ट्रखादि श्राकाररूप योनि स्थानकनि विषै लघु अंतर्मुहूर्त करि संपूर्ण शरीर करि जीव का उपजना, सो उपपाद जन्म है। से तीन प्रकार जन्म भेद जानने ।
बहुरि इति सम्मूर्छनादि करि तिनि जीवनि की योनि कहिए । जव के. शरीर ग्रहण का आधारभूत स्थान, ते यथासंभव नव प्रकार हैं । सचित, शीत,
१. सम्न्नगर्भाषपादा जन्म ॥ ३१ ॥
२. चित्तशीतसंयुताः सेतराः मिश्राश्चैकमस्तवोनयः ॥ ३२॥ तत्त्वार्थ सूत्र अन्याय दुसरा.