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सम्बनितिका भाषादीका ]
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टीका - उपपाद जन्मभेद विर्षे शीत अर उष्ण ए दोय योनि हैं । योनिरूप पुद्गल स्कंध शीत हैं का उध्य हैं। तहां नारकोनि के रत्नप्रभा का बिलनि ते लगाइ धमप्रभा बिलनि का तीन चौथा भान पर्यन्त बिलनि विर्षे उष्ण योनि ही है। बहरि धूमप्रभा बिलनि का चौथा भाग ते लगाइ महातम प्रभा का विलनि पर्यन्त बिलनि विषं शीत योनि ही है, असा विशेष जानना । बहुरि अवशेष गर्भ जन्मभेद विर्षे अर सम्मूर्छन जन्म के भेद विर्षे शीत, उष्ण, मिथ तीनों योनि हैं। कोई योनिरूप पुद्गल स्कंध शीत ही हैं, कोऊ उष्ण ही हैं । कोऊ योनिरूप पुद्गल स्कंध विधें कोई पुदगल शीत है, कोई उष्ण है, तातें मित्र हैं। तहां तेजस्कायिक जीवनि विर्षे उष्ण ही योनि है । तहां योनिरूप पुद्गल स्कंध उष्ण ही है। बहुरि जलकायिक जीवनि विर्षे शीत ही योनि हैं। तहां योनिरूप पुद्गल स्कंघ शीत ही हैं । बहुरि उपपादन देव-नारकी अर एकेंद्रिय इन विषं संवृत ही योनि है; जहां उपजै असा योनिरूप पुद्गल स्कंध, सो अप्रकट आकाररूप ही है । बहुरि विकलेंद्रिय विर्षे विवृत योनि ही है; जहां उपजे असा योनिरूप पुद्गल स्कंध, सो प्रकट ही है।
गब्भजजीवाणं पुरण, मिस्सं णियमेण होदि जोणी हु । सम्मुच्छरणपंचक्खे, वियलं वा विउलजोगी हु॥७॥ गर्भजजीवानां पुनः, मिश्रा नियमेन भवति योनिहि ।
संमूच्र्छनपंचाक्षेषु, विकलं वा विवृतयोनिहिं ।।८।। टीका - बहुरि गर्भज जीवनि के संवत, विवृत दोऊरूप मिश्र योनि है । जहां उपजे असा योनिरूप पुद्गल स्कंध विर्षे किछु प्रकट, किछु अप्रकट हैं । बहुरि सम्मू
छन पंचेंद्रियनि विर्षे विकलेंद्रियवत् विवृत योनि ही है। - भाग योनिभेदनि की संख्या का उद्देश के प्रागै कथन का संकोचनि कौं
सामण्णण य एवं, रणव जोगीयो हवंति वित्थारे । लक्खाण चबुरसीदी, जोरपीओ होलि णियमेण ॥८॥ सामान्येन च एवं, नव योनयो भयंति विस्तारे । लक्षाणां चतुरशीतिः, योनयो भवंति नियमेन ॥८॥