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सम्यग्जरनचन्द्रिका भाषाटीका ]
।११ समस्तपना करि केवलज्ञान विना न जानिये है. यात सर्वपर्यायरूप जीव जानने कौं असमर्थपना है, तथापि तज्जातयः कहिए सोई एकेन्द्रियत्वादिरूप है जाति जिनकी। बहुरि संगृहीतार्थाः कहिए समस्तपना करि गर्भित कोए हैं, एकठे कीये हैं अक्ति जिनिकरि, ऐसे जीव हैं, तेई जीवसमास हैं; ऐसा जानना । अथवा अन्य अर्थ कहै हैं - संगृहीतार्थाः कहिए समस्तपना करि गभित करी है, एकठी करी है व्यक्ति जिन करि ऐसी तज्जातयः कहिए ते जाति हैं । जाते विशेष विना सामान्य न होइ । काहे तैं ? जाते अ॒सा वचन है - 'निविशेषं हि सामान्यं भवेच्छशविषारणवत्' याका अर्थ - विशेष रहित जो सामान्य, सो ससा के सींग समान प्रभावरूप है, तातै संगृहीतार्थ जे वे जाति, तिनका कारणभूत जातिनि करि जीव प्राणी हैं, ते 'अनेकेऽपि' कहिए यद्यपि अनेक हैं, बहुविधा अपि कहिए बहुत प्रकार हैं; तथापि ज्ञायते कहिए जानिए हैं, ते वे जाति जीवसमास हैं, असा जानना ।
भावार्थ - जीवसमास शब्द के तीन अर्थ कहे । तहां एक अर्थ विष एकेंद्रिययुक्तत्वादि समान धर्मनि कौं जीवसमास कहे । एक अर्थ विषं एकेद्रियादि जीवनि कौं जीवसमास कहे । एक अर्थ विर्षे एकेंद्रियत्वादि जातिनि कौं जीवसमास कहे, असे विवक्षा भेद करि तीन अर्थ जानने ।
___ आगे जीवसमास की उत्पत्ति का कारण बहुरि जीवसमास का लक्षण कहै हैं -
तसचदुजुगाणमझे, अविरुद्धेहिं जुदजादिकम्नुवये । जीवसमासा होंति हु, तब्भवसारिन्छसामण्णा ॥ ७१॥ असचतुर्युगलानां मध्ये, अविरुद्धयुतजातिकम्र्मोदये। जोक्समासा भवंति हि, तद्भवसादृश्यसामान्याः ।। ७१ ।।
टोका - स-स्थावर, बहुरि बादर-सूक्ष्म, बहुरि पर्याप्त-अपर्याप्त, बहुरि प्रत्येक साधारण ऐसे नाम कर्म की प्रकृतिनि के च्यारि युगल हैं । तिनिके विर्षे यथासंभव परस्पर विरोध रहित जे प्रकृति, लिनिकरि सहित मिल्या ऐसा जो एकेद्रियादि जातिरूप नाम कर्म का उदय, ताकौं होते संतें प्रकट भए ऐसे तद्भवसादृश्य सामान्यरूप जीव के धर्म, ते जीवसमास हैं।