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सम्पप्लानचन्द्रिका भाषाटीका ] तीन गुणस्थानवी जीवनि के गुणधेणी निर्जरा द्रव्य असंख्यात गुणा है । बहुरि ताते उपशांत कषाय गुणस्थानवर्ती जीव के मुणश्रेणी निर्जरा द्रव्य असंख्यात गुणा है । बहुरि तातं क्षपक श्रेणीवाले अपूर्वकरणादि तीन गुणस्थानवी जीव के गुणश्रेणी निर्जरा दम्य असंख्यात गुरगा है । बहुरि तातें क्षीण कषाय रणस्थानवी जीव के गुणधेरणी निर्जरा द्रव्य असंख्यात गुणा है । बहुरि तातै समुद्घात रहित जो स्वस्थान केवली जिन, ताफै गुणश्रेणी निर्जरा द्रव्य असंख्यात गुणा है । बहुरि ताते समुद्घात सहित जो स्वस्थान समुद्घात केवली जिन, ताके गुणश्रेणी निर्जरा द्रव्य असंख्यात गुणा है । असं ग्यारह स्थानकनि विर्षे गुणश्रेणी निर्जरा द्रव्य के स्थानस्थान प्रति असंख्यातमुरणापना कह्या ।
अब तिस गुणश्रेणी निर्जरा द्रव्य का प्रमाण कहिए है । कर्मप्रकृतिरूप परिया पुद्गल परमाण, तिनका नाम इहां द्रव्य जानना । अनादि संसार के हेतु तें बंध का संबंध करि बंधरूप भया जो जगच्छे णी का धनमात्र लोक, तींहि प्रमाण एक जीव के प्रदेशनि विर्षे तिष्ठता झानावरणादिक मूल प्रकृति का उत्तर प्रकृति संबंधी सत्तारूप सर्वद्रव्य, सो आगे कहिएगा जो त्रिकोण रचना, ताका अभिप्राय करि किचित् ऊन ड्योढ़ गुणहानि श्रआयाम का प्रमाण करि समयप्रबद्ध का प्रमाण कौं गुण जो प्रमाण होइ, तितना है ।
बहुरि इस विर्षे प्रायु कर्म का स्तोक द्रव्य है, तात या विधं किंचित् ऊन किए अवशेष द्रव्य सात कर्मनि का है । तात याकौं सात का भाग दीए एक भाग प्रमाण ज्ञानावरण कर्म का द्रव्य हो है । बहुरि याकौं देशघाती, सर्वघाती द्रव्य का विभाग के अथि जिनदेव करि देखा यथासंभव अनंत, ताका भाग दीए एक भाग प्रमाण तौ सर्वघाती केवलज्ञानावरण का द्रव्य है । अवशेष बहुभाग प्रमाण मतिज्ञानादि देशघाति प्रकृतिनि का द्रव्य है । बहुरि इस देशघाती द्रव्य कौं मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय, ज्ञानावरणरूप च्यारि देशघाती प्रकृतिनि का विभाग के अथि च्यारि का भाग दीए एक भाग प्रमाण मतिज्ञानावरण का द्रव्य हो है ।
भावार्थ - इहा मतिज्ञानावरण के द्रव्य को गुणश्रेणी का उदाहरण करि कयन कीया है । तातै मतिज्ञानावरण द्रव्य का ही ग्रहण कीया है । अस ही अन्य प्रकृतिनि का भी यथासंभव जानि लेना । बहुरि इस मतिज्ञानावरण द्रव्य कौं अपकर्षण भागहार का भाग देइ, तहां बहुभाग तो तैसे ही तिष्ठ है; असा जानि एक भाग का ग्रहण कीया।