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सम्यग्ज्ञानचन्द्रकर भापोटीका ]
केवलज्ञानदिवाकरकिरणकलापप्रणाशिताज्ञानः । नवकेवल लब्ध्युद्गमसुजनितपरमात्मव्यपदेश: ॥ ६३॥
टीका - केवलज्ञानंदिया करकिरस्पकलापप्रणाशिताज्ञान: कहिए केवलज्ञानरूपी दिवाकर जो सूर्य, ताके किरणनि का कलाप कहिए समूह, पदार्थनि के प्रकाशने विषै प्रवीण दिव्यध्वनि के विशेष, तिनकरि प्रनष्ट कीया है शिष्य जननि का प्रज्ञानांधकार जानें औसा सयोगकेवली है । इस विशेषरण करि सयोगी भट्टारक के भव्यलोक कौं उपकारीपना है लक्षण जाका, जैसी परार्थरूप संपदा कही । बहुरि नवकेवललब्ध्युद्गम सुजनितपरमात्मव्यपदेशः ' कहिए क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिकचारित्र, ज्ञान, दर्शन, दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्यरूप लक्षण धरें जे नव केवललब्धि, तिनिका उदय कहिए प्रकट होना, ताकरि सुजनित कहिए वस्तुवृत्ति कर निपज्या है परमात्मा, असा व्यपदेश कहिए नाम जाका, असा प्रयोगकेवली है । इस विशेषण करि भगवान परमेष्ठी के अनंत ज्ञानादि लक्षण धरै स्वार्थरूप संपदा दिखाइए है।
असहायरणारा दसरणसहिओ इदि केवली हु जोगेण ।
जुत्तो त्ति सजो गिजिरो,' अस्पाइरिहारिसे उत्तो ॥ ६४ ॥ २
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असहायज्ञान दर्शनसहितः इति केवलो हि योगेन । युक्त इति सयोगिजिनः श्रनादिनिधनाषें उक्तः ॥ ६४॥
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टीका योग करि सहित सो सयोग र परसहाय रहित जो ज्ञान दर्शन, तनिकर सहित सो केवली, सयोग सो ही केवली, सो सयोगकेवली । बहुरि घातिकर्मेfन का निर्मूल नाशकर्ता सो जिन सयोगकेवली सोई जिन, सो सयोगकेवलिजिन कहिए | असे नादि निधन ऋषिप्रणीत श्रागम विषै कया है ।
आगे प्रयोग केवल गुणस्थान को निरूपे हैं -
सोसि संपतो, णिरुद्धणिस्सेसआसवो जीवो । कम्मरयविक्को, गयजोगो केवली होदि ॥ ६५ ॥ ३.
१. 'सजगजिणो' इसके स्थान पर 'सजोगो इदि ऐसा पाठान्तर है ।
२. पट्खण्डागम - घवला पुस्तक १, पृष्ठ १६३, गाथा १२५ ३. षट्खण्डागम - धवला पुस्तक १, पृष्ठ २०० गाथा १२६