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सभ्यासामन्द्रिका भावाटीका ) स्पर्धक अर बादरकृष्टि क्षपक श्रेणी विर्षे ही हो है, उपशम श्रेणी विर्षे न हो है । बहुरि अनिवृत्तिकरण के परिणामनि करि ही कषायनि के सर्व परमाणु प्रानुपूर्वी संक्रमादि विधान करि एक लोभरूप परिणमाइ बादरकृष्टिगत लोभरूप करि पीछे तिनिकौं सूक्ष्मकृष्टिरूप परिणमाव है, सो सूक्ष्मकृष्टि को प्राप्त भया लोभ, ताका जघन्य बादरकृष्टि से भी अनंतवें भाग उत्कृष्ट सूक्ष्मकृष्टि विर्षे अनुभाग हो है। तहां अनंती : कृष्टिनि विर्षे क्रम ते अनंतगुणा अनुभाग घटता है । बहुरि परमाणुनि का प्रमाण जघन्य कृष्टि से लगाइ उत्कृष्ट कृष्टि पर्यन्त चय घटता क्रम लीए है, सो विशेष आगे लिखेंगे सो जानना । सो यहु विधान क्षपक श्रेणी विर्षे हो है।
उपशम श्रेणी विर्षे पूर्वस्पर्धकरूप जे लोम के केई परमाणु, तिन ही की सूक्ष्म कृष्टिरूप परिणमावै है, ताका विशेष आगै लिखेंगे ।
बहुरि असें अनिवृत्तिकरण विर्षे करी जो सत्ता विर्षे सूक्ष्म कृष्टि, सो जहां उदयरूप होइ प्रवर्ते, तहां सूक्ष्मसापराय गुणस्थान हो है अंसा जानना ।
अणुलोहं वेदंतो, जीवो उक्सामगो व खवगो वा । सो सुहमसांपराओ, जहखादेणूगओ किंचि ॥६०॥
अणलोभं विदन, जीयः उपशामको वक्षपको वा ।
स सूक्ष्मसापरायो, यथाख्यातेनोनः किंचित् ॥६०॥ • टीका ~ अनिवृत्तिकरण काल का अंत समय के अनंतरि सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान कौ पाइ, सूक्ष्म कृष्टि कौं प्राप्त जो लोभ, ताके उदय कौं भोगवता संता उपशमावनेवाला वा क्षय करने वाला जीव, सो सूक्ष्मसापराय है; जैसा कहिए है ।
सोई सामायिक, छेदोपस्थापना संयम की विशुद्धता से प्रति अधिक विशुद्धतामय जो सूक्ष्मसांपराय संयम, तीहिकरि संयुक्त जो जीव; सो यथाख्यातचारित्र संयुक्त जीव ते किंचित् मात्र ही हीन है। जाते सूक्ष्म कहिए सूक्ष्म कृष्टि को प्राप्त असा जो सांपराय कहिए लोभ कषाय, सो जाकै पाइए, सो सूक्ष्मसांपराय है असा सार्थक नाम है।
प्रागै उपशांत कषाय गुणस्थान के स्वरूप का निर्देश करें हैं । कदकफलजुइजलं का, सरए सरवारिणयं व रिणम्मलयं ।
सयलोवसंतमोहो, उवसंतकसायओ होवि ॥६१॥२ १. 'फदकफलजुदवले के स्थान पर 'समयमहल जल ऐसा पाठान्तर है। २. षट्खण्डागम - धक्ला पुस्तक १, पृष्ठ १६०, गाथा १२२