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सम्यग्ज्ञानधान्द्रका भाषाटोका 1
[ १२६ इस सूत्र विर्षे संरंभ, समारंभ. प्रारंभ - ए तीन; पर मन, वचन, काय - ए योग तीन ; अर कृत, कारित, अनुमोदित - ए तीन; पर क्रोध, मान, माया, लोभ ए कषाय च्यारि; इनके एक-एक मूल भेद के एक-एक उत्तर भेद कौं होते अन्य सर्व मूल भेदनि के एक-एक उत्तर भेद संभव हैं। ताते क्रम ते ग्रहे, इनका परस्पर गुणने तें एक सी आठ भेद हो हैं, सो यह संख्या जानना ।
बहुरि पहला-पहला प्रमाण मिलन फरिवाने एका गुह के डारी गागला प्रमाण पिंड कौं स्था, प्रथम प्रस्तार हो हैं । बहुरि पहला-पहला प्रमाण पिंड. की संख्या कौं पागला मल भेद के उत्तर भेद प्रमाण स्थानकनि विर्षे स्थापि, तिनके ऊपरि तिनि उत्तर भेदनि कौं स्थापै, द्वितीय प्रस्तार हो है । (देखिए पृष्ठ १३० पर)
बहुरि प्रथम प्रस्तार अपेक्षा अंत का मूल भेद तें लगाय आदि भेद पर्यन्त पर द्वितीय प्रस्तार अपेक्षा प्रादि मूल भेद तें लगाय अंत भेद पर्यन्त कम ते उत्तर भेदनि का अंत पर्यन्त जाइ-जाइ बाहुड़ना का अनुक्रम लीए उत्तर भेदनि के पलटनेरूप धक्ष संचार जानना । 'बहुरि सगमाणेहि विभ' इत्यादि पूर्वोक्त सूत्र करि नष्ट का विधान करिए।
तहां उदाहरण - प्रथम प्रस्तार अपेक्षा कोउ पूछे कि पचासवां पालाप कौन हैं ?
तहां पचास की पहले च्यारि कषाय का भाग दीए, बारह पाए, अर अवशेष दोय रहै, तातें दूसरा कषाय मान ग्रहना । बहुरि अवशेष बारह विर्षे एक जोडि कृतादि तीन का भाग दीए, च्यारि पाए, अवशेष एक रह्या, तातें पहला भेद कृत जानना । बहुरि पाए च्यारि विर्षे एक जोडि, योग तीन का भाग दीए, एक पाया, अवशेष दोय, सो दूसरा बचन योग ग्रहना । बहुरि पाया एक विर्षे एक जोड़ें संरंभादि तीन भाग दीए किछू भी न पाया, अवशेष दोय, सो दूसरा भेद समारंभ ग्रहना । असें पूछया हुवा पचासवां आलाप मान कवायकृत वचन समारंभ असा भंग रूप हो है । जैसे ही अन्य नष्ट साधने ।
बहुरि 'संठाविदूरणरूवं' इत्यादि पूर्वोक्त सूत्र करि उद्दिष्ट का विधान करिए। तहां उदाहरण ।
प्रश्न -- जो माया कषाय कारित मन प्रारंभ असा पालाप केथयां है ?