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सम्पज्ञानचन्द्रिका पीठ
[ १३९ से बारणव रहे । इनकी पद सोलह, ताका भाग दीये एक सौ बासठि पाये, सोई प्रथम समय संबंधी परिणामनि की संख्या हो है । बहुरि यामैं एक-एक चय बधाये संते द्वितीय, तृतीयादि समय संबंधी परिणामनि की संख्या हो है । तहां द्वितीय समय संबंधी एक सौ छयासठ, तृतीय समय संबंधी एक सौ सत्तरि इत्यादि क्रम ते एक-एक चय बधती परिणामनि की संख्या हो है । १६२, १६६, १७०, १७४, १७८, १५२, १८६, १६०, १६४, १६८, २०२, २०६, २१०, २१४, २१८, २२२ ।
इहां अंत समय संबंधी परिणामनि की संख्यारूप अंतधन ल्याइये है।
'व्येकं पदं चयाभ्यस्तं तदादिसहितं धनं' इस सूत्र ते एक घाटि गच्छ पंद्रह, ताकौं चय च्यारि करि गुण साटि, बहारे या प्रापि एक प्रासठि करि युक्त कीएं दोय से बाईस होइ, सोई अंत समय संबंधी परिणामनि' का प्रमाण जानना । बहुरि यामैं एक चय च्यारि घटाएं दोय से अठारह विचरम समय संबंधी परिणामनि का प्रमाण जानना । जैसे कहैं जो बन कहिए समय-समय संबंधी परिणामनि का प्रमाण, तिनकौं अधःप्रवृतकरण का प्रथम समय तें लगाई अंत समय पर्यन्त ऊपरिऊपरि स्थापन करने।
आर्ग:अनुकृष्टिरचना कहिए है - तहां नीचे के समय संबंधी परिणामनि के खंड तिनके ऊरि, के समय संबंधी परिणामनि के जे खंडनि करि जो सादश्य कहिण समानता, सो अनुकृष्टि असा नाम धरै है।
भावार्थ - परि के अर नीचे के समय संबंधी परिणामनि के जे खंड, ते परस्पर समान जैसै होइ, तैसें एक समय के परिणामनि विर्षे खंड करना, तिसका नाम अनुकृष्टि जानना । तहां ऊर्ध्वगच्छ के संख्यातवां भाग अनुकृष्टि का गच्छ है, सो अंकसंदृष्टि अपेक्षा ऊज़मच्छ का प्रमाण सोलह, ताको संख्यात का प्रमाण च्यारि का भाग दीए जो च्यारि पाए; सोई अनुकृष्टि विर्षे गच्छ का प्रमाण है । अनुकृष्टि विर्षे खंडनि का प्रमाण इतना जानना । बहुरि ऊर्ध्व रचना का चय की अनुकृष्टि मच्छ का भाग दीएं, अनुकृष्टि विर्षे चय होइ, सो ऊर्ध्व चय च्यारि की अनुकृष्टि गच्छ ध्यारि का भाग दीएं एक पाया; सोई अनुकृष्टि चय जानना । खंड-खंड प्रति बधती का प्रमाण इतता है । बहुरि प्रथम समय संबंधी समस्त परिणामनि का प्रमाण एक सौ बासठ, सो इहां प्रथम समय संबंधी अनुकृष्टि रचना विर्षे सर्वधन जानना । बहुरि 'ध्येकपदार्घनश्चयगुणो गच्छ उत्तरधन' इस सूत्र करि एक धाटि गच्छ तीन,