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। गोम्मटसार खोदकाण्ड गाया ४४ चौवीस अनंकित स्थान पटाइए, तब च्यारि से एक होइ । बहुरि इनिकों छह इंद्रिय करि गुरिगए अर इहां अंतभेद का ग्रहण है, तातें अनंकित न घटाइए, तब चौवीस से छह होइ । बहुरि इनकौं पांच निद्रा करि गुरिणए अर इहां चौथी निद्रा का ग्रहण है, तात याके परै एक अनंकित स्थान है, ताकौं घटाइए, तब बारह हजार गुरगतीस होइ । याकों दोय प्रणय करि गुणिए अर इहां प्रथम भेद का ग्रहण है; तात याके परै एक अनंकित स्थान घटाइए, तब चौवीस हजार सत्तावन होंइ, असें स्नेहवाननिद्रालु-मन के वशीभूत-अनंतानुबंधीक्रोधयुक्त-मूर्खकथालापी असा पूछया हुवा
आलाप चौवीस हजार सत्तावनवां जानना । याही प्रकार अन्य उद्दिष्ट साधने । बहरि जैसे प्रथम प्रस्तार अपेक्षा विधान कहा; तैसे ही द्वितीय प्रस्तार अपेक्षा यथासंभव नष्ट, उद्दिष्ट ल्यावने का विधान जानना । असे साडा सैंतीस हजार प्रमाद भंगनि के प्रकार जानने।
बहुरि याही प्रकार अठारह हजार शील भेद, चौरासी लाख उत्तर गुण, मतिज्ञान के भेद वा पाखंडनि के भेद वा जीवाधिकरण के भेद इत्यादिकनि विर्षे जहां अक्षसंचार करि भेदनि की पलटनी होइ, तहां संख्यादिक पांच प्रकार जानने । विशेष इतना पूर्व प्रमादनि की अपेक्षा वर्णन कीया है । इहां जाका विवक्षित वर्णन होइ, ताको अपेक्षा सर्वविधान करना । तहां जैसे प्रमादनि के विकथादि मूलभेद कहे हैं, तैसें विवक्षित के जेते मूलभेद होइ, ते कहने । बहुरि जैसे प्रमाद के मूल भेदनि के स्त्रीकथादिक उत्तरभेद कहै हैं, तैसे विवक्षित के मूलभेदनि के जे उत्तर भेद हो हैं, ते कहने । बहुरि जैसे प्रभादनि के आदि-अंतादिरूप मूलभेद ग्रहि विधान कह्या है, तैसें विवक्षित के जे आदि-अंतादि मूलभेद होंइ, तिनको प्रहि विधान करना । बहुरि जैसे प्रमाद के मूलभेद उत्तरभेद का जेता प्रमाण था, तितना ग्रहण कीया । तैसे विवक्षित के मूल भेद वा उत्तर भेदनि का जेता-जेता प्रमाण होइ, तितना ग्रहण फरना । इत्यादि संभवते विशेष जानि, संख्या पर दोय प्रकार प्रस्तार पर तिन प्रस्तारनि की अपेक्षा अक्षसंचार पर नष्ट पर समुद्दिष्ट ए पांच प्रकार हैं, ते यथासंभव साधन करने । .. तहां उदाहरण ~ तत्त्वार्थसूत्र का षष्टम अध्याय विर्षे जीवाधिकरण के वर्णन स्वरूप असा सूत्र है - "प्राचं संरंभसमारंभारंभयोगकृतकारितानुसतकषायविशेषस्त्रिस्त्रिस्त्रिश्चतुश्रकशः" ।