________________
सम्यग्ज्ञामचन्द्रिका भाषाटोका।
कि कृत्य ? कहाकरि ? प्रगम्य कहिये प्रकर्षपने नमस्कार करि प्ररूपण करौ हौं । कं किसहि ? जिनेंद्रवरनेमिचंद्रं - कर्मरूप वैरीनि की जीते, सो जिन | अपूर्वकरण. परिणाम को प्राप्त प्रथमोपशम सम्यक्त्व कौं सन्मुख सातिशय मिथ्याष्टि, ते जिन कहिये । तेई भए इंद्र, कर्मनिर्जरारूप ऐश्वर्य, ताका भोक्ता कौं आदि देकरि सर्वजिनेंद्रनि वि वर कहिये श्रेष्ठ, असंख्यातगुणी महानिर्जरा का स्वामी असा चामुंडराय करि निर्मापित महापूत चैत्यालय वि विराजमान नेमि नामा तीर्थंकर देव, सोउ भव्य जीवनि कौं चंद्रयति कहिये आह्लाद कर वा समस्त वस्तुनि कौं प्रकाशै अथवा संसार प्राताप पर अज्ञान अंधकार का नाशक चंद्र अंसा जिनेंद्रवरनेमिचंद्र । बहुरि कैसा है ? अकलंक कहिए कलंकरहित, ताकौं नमस्कार करि जीव का प्ररूपण मैं कहौंगा।
MPF
अथवा अन्य अर्थ कहैं - कं प्रणम्य ? किसहि नमस्कार करि जीव का प्ररूपण करौं हौं ? जिनेंद्रवरनेमिचंद्र - नेमिचंद्र नामा बाईसमा जिनेंद्र तीर्थकर देव, ताहि नमस्कार करि जीव की प्ररूपणा करौं हौं । कैसा है सो ? सिद्ध कहिये. समस्त लोक विर्षे विख्यात है । बहुरि कैसा है ? शुद्ध कहिये द्रव्य-भावस्वरूप धातिया कर्मनि करि रहित है । तथापि ताके कोई संशयी क्षुधादिदोष का संभव कहै है, तिस प्रति कहैं हैं - कैसा है सो ?: अकलंक कहिये नाहीं विद्यमान है कलंक कहिये क्षुधादिक अठारह दोष जाके, ऐसा है । बहुरि कैसा है ? गुणरत्नभूषणोदयं - मुण जे अनंत ज्ञानादिक, तेई. भए रत्न के आभूषण, तिनका है उदयः कहिये उत्कृष्टपना जा विषं ऐसा है । इस प्रकार अन्य विर्षे न पाईए ऐसे असाधारण विशेषण; समस्त अतिशयनि के प्रकाशक, अन्य के आप्तपने की वार्ता को भी जे सहैं. नाही, तिन इनि विशेषणति करि इस ही भगवान के परम प्राप्तपना, परम कृतकृत्यपना हम आदि दै जे अकृतकृत्य हैं, तिनके शरणपना प्रतिपादन किया है, ऐसा जानना ।:::. .
अथवा अन्य अर्थ कहै हैं - कं प्रणम्य ? किसहि नमस्कार करि जीव का प्रतिपादन करौं हौ ? जिनेंद्रवरनेमिचंद्रं :- सकल आत्मा के प्रदेशनि विर्षे सघन बंधे जे धाति कर्मरूप मेघपटल, तिनके विघटन तें प्रकटीभूत भए... अनंतजानादिक नव केवल लब्धिपना; तातें जिन कहिये । बहुरि अनौपम्प परम ईश्वरता करि संपूर्णपनां होनेकरि इंद्र कहिये । जिन सोई जो इंद्र सोजिनेंद्र, अपने ज्ञान के प्रभाव करि व्याप्त भया है तीन काल संबंधी तीन लोक का विस्तार जाके ऐसा जिनेंद्र, वर कहिये अक्षर संज्ञा करि चौबीस, कैसे ? 'कटपयपुरस्थवणः' इत्यादि सूत्र अपेक्षा य र ल व विर्षे वकार
-.-RRB
-11720PM
-
-
-