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। गोम्मटसार गोषका गाथा ३७ हैं । असें च्यारि विकथानि करि गुणे, च्यारि कषायनि के सोलह प्रमाद हो हैं । बहुरि ए नीचले भंग सोलह भए, ते ऊपरि के इंद्रियप्रभादनि विर्षे एक-एक विर्षे संभव हैं । असे सोलह करि गुरणे, पंच इंद्रियनि के असी प्रमाद हो हैं । तैसे ही निद्रा विर्षे, बहुरि स्नेह विर्षे एक-एक ही भेद है। तातें एक-एक करि गुण भी असी-असी ही प्रमाद हो हैं । जैसे विशेष संख्या की उत्पत्ति कही ।
आग प्रस्तार का अनुक्रम दिखावे हैं -
पढमं पमदपमारणं, कमेण शिक्विविय उवरिमारणं च । पिंडं पडि एक्ककं, शिक्खिते होदि पत्थारो ॥३७॥
प्रथम प्रमावप्रमाणं, क्रमेण निक्षिप्य उपरिमाणं च ।
पिडं प्रति एकैक, निक्षिप्ते भवति प्रस्तारः ॥३७॥ टीका - प्रथम विकथास्वरूप प्रमादनि का प्रमाण का विरलन करि एक-एक जुदा दिखेरी, पीछे क्रम करि नीचें विरल कीया था। ताकै एक-एक भेद प्रति एकएक ऊपरि का प्रमादपिंड कौं स्थापन करना, तिनको मिलें प्रस्तार हो है । सो कहिए है - बिकथा प्रमाद का प्रमाण च्यारि, ताकौं विरलन करि क्रम से स्थापि (१ १ १ १) बहुरि ताकै ऊपरि का दुसरा कषाय नामा प्रमाद, ताका पिंड जो समुदाय, ताका प्रमाण च्यारि (४) ताहि विरलनरूप स्थापे जे नीचले प्रमाद, तिनिका एक-एक भेद प्रति देना।
भावार्थ - एक-एक विकथा भेद ऊपरि च्यारि-च्यारि कषाय स्थापने क ४४४४ वि १ १ १ १ सो इनकौं मिलाए जोडे, सोलह प्रमाद हो हैं । बहुरि ऊपरि की अपेक्षा लीए याकौं पहिला प्रमादपिड कहिए, सो याकौं विरलन करि क्रम से स्थापि, याते ऊपरी का तिस पहिला की अपेक्षा याको दूसरा इंद्रियप्रमाद, ताका पिंड प्रमाण पांच, ताहि पूर्ववत् विरलन करि स्थापे, जे नीचले प्रमाद, तिनके एक-एक भेद प्रति एक-एक पिंडरूप स्थापिए -
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