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सपनामचन्द्रिका भाषाटीका
। ११५ भावार्थ - पंद्रहवां अालाप विष लोभी जानना । बहुरि तहां लब्ब राशि एक, . तीहि विर्षे एक न जोड़ना । जातें जहां राशि शुद्ध होइ जाय, तहां पाया राशि विष
एक और न मिलावना सो एक का एक ही रह्या, ताकौं ऊपरि का इंद्रिय प्रमाण पिंड पांच का भाग दीए, लब्धराशि शून्य है । जाते भाज्य से भागहार का प्रमाण अधिक है। तातें इहां लब्धराशि का अभाव है । अवशेष एक रह्या, तातै इंद्रिय का स्पर्शन इंद्रिय के वशीभूत जैसा प्रथम भेद रूप अक्ष पंद्रहवां पालाप विष सूचे है । असे पंद्रहवां राष्ट्रकथालापी-लोभी-स्पर्शन इंद्रिय के वशीभूत-निद्रालु-स्नेहवान ऐसा भालाप जानना।
याही प्रकार जेथवा पालाप जान्यां चाहिए, तेथवा नष्ट पालाप को साधे ।
बहुरि इहां द्वितीय प्रस्तार अपेक्षा विकथादिक का क्रम करि जैसे नष्ट ल्यावने का विधान कहा, तैसे ही प्रथम प्रस्तार अपेक्षा ऊपरि ते इंद्रिय, कषाय, विकथा का अनुजम करि पूर्वोक्त गालि निभान लें नट ल्यावने का विधान करना ।
तहां उदाहरण - किसी ने पूछा प्रथम प्रस्तार अपेक्षा पंद्रहवां पालाप कौन ?
तहां इस संख्या कौं पांच का भाग दीए, अवशेष शून्य, तातें इहां अंत का भेद धोत्र इंद्रिय के वशीभूत ग्रहण करना ।
बहुरि इहां पाए तीन, ताकौं कषाय पिंड प्रमाण च्यारि, ताका भाग दीएं, लब्धराशि शून्य, अवशेष तीन, तातें तहां तीसरा कषाय भेद मायावी जानना । बहुरि लब्धराशि शून्य विर्षे एक मिलाएं एक भया, ताकौं विकथा का प्रमाद पिंड च्यारि का भाग दीएं लब्धराशि शून्य, अवशेष एक, सो स्त्रीकथालापी जानना । ऐसे प्रथम प्रस्तार अपेक्षा पंद्रहवां स्नेहवान-निद्रालु-श्रोत्र इंद्रिय. के वशीभूत-मायावीस्त्रीकथालापी असा आलाप जानना । जैसे ही अन्य नष्ट पालाप साधने । . प्रागं पालाप बरि संख्या साधने कौं अगिला सूत्र कहैं हैं -
संठाविवरण रूवं, उवरीदो संगुणित्तु सगमाणे । प्रवरिणज्ज अरकिदयं, कुज्जा एमेव सम्वत्थ ।।४२३१ संस्थाप्य रूपसुपरितः संगुरिणत्या स्वकमानम् ।। अपनीयानंकितं, कुर्यात् एवमेव सर्वत्र ॥४२॥ .
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