________________
eurotrant भावाटीका 1
| Gu
याका अर्थ
श्रेय जो कल्याण, ताके मार्ग की सम्यक् प्रकार सिद्धि, सो परमेष्ठि के प्रसाद तैं हो है। इस हेतु तैं मुनि प्रधान हैं, ते शास्त्र की यदि विषै तिस परमेष्ठी का स्तोत्र करना कहूँ हैं । बहुरि ऐसा वचन है
:
—
श्रभिमतफलसिद्धेरभ्युपायः सुबोध:, प्रभवति स च शास्त्रासस्य चोत्पत्तिराप्तात् । इति भवति स पूज्यत्प्रसादात्प्रबुद्धेर्न हि कृतसुपकारं पण्डिता: ( साधयो) विस्मरति ॥
याका अर्थ - वांछित, अभीष्ट फल की सिद्धि होने का उपाय सम्यग्ज्ञान है । बहुरि सो सम्यग्ज्ञान शास्त्र तें हो है । बहुरि तिस शास्त्र की उत्पत्ति प्राप्त जो सर्वज्ञ लें है । इस हेतु तैं सो प्राप्त सर्वज्ञदेव है, सो तिसका प्रसाद ते ज्ञानवंत भए जे जीव, तिनकरि पूज्य हो हैं, सो न्याय ही है व पंडित हैं, ते कीए उपकार की नाहीं भूलै हैं, तात शास्त्र की आदि विषै उपकार स्मरण किसे अर्थ करिए ऐसा न कहना : ऐसे चौथा प्रयोजन दूढ किया ।
याही विघ्न विनाशने कौं, बहुरि शिष्टाचार पालने को, बहुरि नास्तिक के परिहार को, बहुरि अभ्युदय का कारण जो परम पुण्य, ताहि उपजावने कौं, बहुरि कीया उपकार के यादि करने को शास्त्र की आदि विषै जिनेंद्रादिक को नमस्कारादि रूप जो मुख्य मंगल, ताक याचरण करत संता, बहुरि जो अर्थ कहेगा, तिस अभिधेय की प्रतिज्ञा की प्रकाशता संता ग्राचार्य है, सौ सिद्धं इत्यादि गाथा सूत्र को कहै है
सिद्धं सुद्धं परमिय, जिरिंगदवरणेमिचंदमकलंकं । गुरपरयरणभूसमुदयं, जीवस्स परूवणं वोच्छं ॥१॥
सिद्धं शुद्धं प्रणम्य, जितेंद्रबरनेमिचन्द्र मकलंकम् । गुणरत्नभूषणोदयं, जीवस्य प्ररूपणं वक्ष्ये ॥१॥
टीका - ग्रहं वक्ष्यामि । अहं कहिए मैं जु हों ग्रंथकर्ता । सो वक्ष्यामि कहिये कहींगा कराँगा । कि ? किसहि करोंगा ? प्ररूपणं कहिये व्याख्यान अथवा अर्थ रूपे अर्थ याकरि प्ररूपिये ऐसा जु ग्रंथ ताहि करोंगा । कस्य प्ररूपण ? किसका प्ररूप कहोगा ? जीवस्य कहिये च्यारि प्राणनि करि जीव है, जीवेगा, जीया ऐसा जीव जो श्रात्मा, तिस जीव के भेद का प्रतिपादन करण हारा शास्त्र