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। गोम्मटार नौबकाण्ड बहुरि प्रमाण. इस शास्त्र का नानाप्रकार अर्थनि करि अनंत है । बहुरि अक्षर माना करि संख्यात है; जाते जीवकांड का सात से पचीस गाथा सूत्र है ।
बहुरि नाम-जीवादि वस्तु का प्रकाशने की दीपिका समान है । तातें संस्कृत टीका की अपेक्षा जीवतत्वप्रदीपिका है ।
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बहुरि कर्ता इस शास्त्र का तीन प्रकार - अर्थकर्ता, ग्रंथकर्ता, उत्तर ग्रंथकर्ता ।
तहां समस्तपने दग्ध कीया घाति कर्म चतुष्टय, तिहकरि उपज्या जो अनन्त ज्ञानादिक चतुष्टयपना, ताकरि जान्या है त्रिकाल संबन्धी समस्त द्रव्य-गुण-पर्याय का यथार्थ स्वरूप जिहैं, बहुरि नष्ट भए हैं क्षुधादिक अठारह दोष जाके, बहुरि चौंतीस अतिशय, पाठ प्रातिहार्य करि संयुक्त, बहुरि समस्त सुरेंद्र-नरेंद्रादिकनि करि पूजित है चरण कमल जाका, बहुरि तीन लोक का एक नाथ, बहुरि अठारह महाभाषा कर सास से शुद्र भाषा, वा संशी संबंधी अक्षर-अनक्षर भाषा तिहस्वरूप, अर तालवा, दांत, होठ, कंठ का हलावना आदि व्यापाररहित, अर भव्य जीवनि की प्रानन्द का कर्ता, पर युगपत् सर्व जीवनि कौं उत्तर का प्रतिपादन करनहारा ऐसी जु दिव्यध्वनि, तिकरि संयुक्त, बहुरि बारह सभा करि सेवनीक, ऐसा जो भगवान श्री वर्द्धमान तीर्थंकर परमदेव, सो अर्थकर्ता जानना ।
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बहुरि तिस अर्थ का ज्ञान वा कवित्वादि विज्ञान पर सात ऋद्धि, तिनकरि संपूर्ण विराजमान ऐसा गौतम गणधर देव, सो ग्रंथकर्ता जानना । बहुरि तिसही के अनुक्रम का धारक, बहुरि नाही नष्ट भया है सूत्र का अर्थ जाकै, बहुरि रागादि दोषनि करि रहित ऐसा 'नो मुनिश्वरनि का समूह, सो उत्तर ग्रंथकर्ता जानना ।
या प्रकार मंगलादि छहोंनि का व्याख्यान इहां कीया । ऐसें तीसरा प्रयोजन दृढ कीया है।
बहुरि तर्क -- जो शास्त्र की आदि वि उपकार स्मरण किसे अर्थ करिए है? तहां कहिए हैं - जो ऐसा न कहना, जातें ऐसा कथन है
.."श्रेयोमार्गस्य संसिद्धिः प्रसादात्परमेष्ठिनः इत्याहुस्तद्गुणस्तोत्रं शास्त्रादौ मुनिपुंगवाः ॥"
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