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संम्याजानन्त्रिक भाषाटोका ) क्षयोपशम हो है । सो स्पर्धकनि का वा निषेकनि का वा सर्वधाति-देशधातिस्पर्धकनि के विभाग का आगै वर्णन होगा, तातै इहां विशेष माहीं लिख्या है। सो इहां भी पूर्वोक्तप्रकार चारित्रमोह को क्षयोपशम ही है । तातें क्षायोपशर्मिक भाव देशसंयत, प्रमत्त, अप्रमत्त विर्षे जानना । तैसे ही ऊपरि भी अपूर्वकरणादि गुणस्थाननि विर्षे चारित्रमोह कौं आश्रय करि भाव जानने ।
- सती उरि उनसमभावो उवसामगेसु खवगेसु। ..
खइओ भावो रिणयमा, अजोगिचरिमोत्ति सिद्धे य ॥१४॥ तत उपरि उपशमभावः उपशामकेषु क्षपकेषु ।
क्षायिको भावो नियमात् अयोगिचरम इति सिद्धे च ॥१४॥ . ___टोका - ताते ऊपरि अपूर्वकरणादि च्यारि मुणस्थान उपशम श्रेणी संबंधी, तिनिविर्षे औपशमिक भाव है । जाते तिस संयम का चारित्रमोह के उपशम ही ते संभव है । बहुरि तैसे ही अपूर्वकरणादि च्यारि गुणस्थान क्षपक श्रेणी संबंधी अर सयोगअयोगीकेवली, तिनिविर्षे क्षायिक भाव है नियमकरि, जात तिस चारित्र का चारित्रमोह के क्षय हो से उपजमा है ।
बहुरि तसे ही सिद्ध परमेष्ठीनि विर्षे भी क्षायिक भाव ही है, जालें तिस सिद्धपद का सकलकर्म के क्षय ही तैं प्रकटपना हो है ।
प्रागै पूर्वै नाममात्र कहे जे चौदह गुणस्थान, तिनिविर्षे पहिले कह्या जो मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, ताका स्वरूप की प्ररूपै हैं - ......: मिच्छोदयरस मिच्छत्तमसहहणं त तच्चप्रत्थाणं । ।
एयंतं विवरीयं, विणयं संसयिदमण्णाणं ॥१५॥ ... मिथ्यात्योदयेन मिथ्यात्वमश्रद्धानं तु सस्वार्थानाम् ।
एकांतं विपरीत, विनयं संशयितमज्ञानम् ॥१५॥ टीका - दर्शनमोहनी का भेदरूप मिथ्यात्व प्रकृति का उदय करि जीव के अतत्व श्रद्धान है लक्षण जाका जैसा मिथ्यात्व हो है । बहुरि सो मिथ्यात्व १. एकांत २. विपरीत ३. विनय ४. संशयित ५. अज्ञान - असे पांच प्रकार है।