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। गोम्मदसार जोनकाय गाया२५
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अभिप्राय करि नियम नाही है । सोई कहिए है -- सम्यक्त्वपरिणाम विषं वर्तमान कोई यायोजन सायु के जधि बहुरि सम्यग्मिथ्यादृष्टि होइ पीछे सम्यक्त्व कौं वा मिथ्यात्व को प्राप्त होइ मरे है। बहुरि कोई जीव मिथ्यात्वपरिणाम वि वर्तमान, सो यथायोग्य परभव का आयु बांधि, बहुरि सम्यग्मिथ्यादृष्टि होइ पीछे सम्यक्त्व कौं वा मिथ्यात्व कौं प्राप्त होइ' मर है । बहुरि से ही माराणांतिक समुद्घात भी मिधगुणस्थान विष नाहीं है । प्रागै असंयत गुणस्थान के स्वरूप कौं निरूपै हैं ।
सम्मत्तक्षेसधादिस्सुक्यायो वेदगं हवे सम्म । चलमलिनमगाढं तं पिच्चं कम्मक्खवरणहेतु ॥२॥ सम्यक्त्वदेशघालेरुदयावेरकं भवेत्सम्यक्त्वम् ।
चलं मलिनमगाढं तन्नित्यं कर्मक्षपरमहेतु ॥२५॥ . टोका - अनंतानुबंधी कषायनि का प्रशस्त उपशम नाहीं है, इस हेतु से तिन अनंतानुबंधी कषायनि का अप्रशस्त उपशम कौं होते अथवा विसंयोजन होते, बहुरि दर्शनमोह का भेदरूप मिथ्यात्वकर्म अर सम्यग्मिथ्यात्वकर्म, इनि दोऊनि कौं प्रशस्त उपशमरूप होते वा अप्रशस्त उपशम होते वा क्षय होने के सन्मुख होते बहरि सम्यक्त्व प्रकृतिरूप देशघातिया स्पर्धकों का उदय होते ही जो तस्वार्थश्रद्धान है लक्षण जाका, असा सम्यक्त्व होइ, सो वेदक असा नाम धारक है ।
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__ जहां विवक्षित प्रकृति उदय पादने योग्य न होइ पर स्थिति, अनुभाग घटनै वा बधने वा संक्रमण होने योग्य होइ, तहां अप्रशस्तोपशम जानना।
बहुरि जहां उदय प्रावने योग्य न होइ पर स्थिति, अनुभाग घटने-बधने वा. संक्रमण होने योग्य भी न होइ, तहां प्रशस्तोपशम जानना ।
बहुरि तीहि सम्यक्त्व प्रकृति का उदय होते देशवातिया स्पर्धकनि के तत्त्वार्थश्रद्धान नष्ट करने को सामर्थ्य का अभाव है। तातें सो सम्यक्त्व चल, मलिन अंगाढ हो है । जाते सम्यक्त्व प्रकृति के उदय का तत्त्वार्थश्रद्धान कौं मल उपजायने मात्र ही विर्षे व्यापार हैं । तीहि कारण ते तिस सम्यक्त्व प्रकृति के देशघातिपना है । अॅसें सम्यक्त्व प्रकृति के उदय को अनुभवत्ता जीव के उत्पन्न भया
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