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বান্ধিা মালীকা ] कं? किसहि ? जिनेंद्रवरनेमिचंद्र जिनेंद्र है वर कहिए भर्ता, स्वामी जाका, सो जिनेन्द्रवर इहां जिन कहिये कर्मनिर्जरा संयुक्त जीव, तिनि विर्षे इंद्र · कहिए स्वामी अर्हत, सिद्ध । बहुरि जिन हैं इंद्र कहिए स्वामी जिनिका ऐसे प्राचार्य, उपाध्याय, साधु; ऐसें जिनेंद्र शब्दकरि पंच परमेष्ठी आए । तिनका पाराधन से उपजे जे सम्यग्दर्शनादिक गुण, तिनिकरि संयुक्त अपना परमगुरु नेमिचंद्र प्राचार्य, ताहि नमस्कार करि जीव प्ररूपणा कहाँगा । सो कैसा है ? सिद्ध कहिये प्रसिद्ध है वा वर्तमान काल विर्षे प्रवृत्तिरूप समस्त शास्त्रनि मैं निष्पन्न है । बहुरि कैसा है ? शुद्ध कहिये पचीस मलरहित सम्यक्त्व जाकै पाइये है वा अतिचार रहित चारित्र जा पाइए है। वा देश, जाति, कुल कर शुद्ध है । बहुरि कैसा है ? अकलंक कहिए विशुद्ध मन, वचन, काय संयुक्त है। बहुरि कैसा है ? मुखरत्नभूषणोदयं - गुणरत्नभूषण कहिए चामुण्डराय राजा, ताकै है उदय कहिये ज्ञानादिक की वृद्धि, जाते ऐसा नेमिचंद्र प्राचार्य है। ऐसे इष्ट विशेष- + रूप देवतानि कौं नमस्कार करना है लक्षण जाका, ऐसा परम मंगल कौं अंगीकार करि याकै अनंतर अधिकारभूत जीवप्ररूपणा के अधिकारनि कौं निर्देश करै हैं ।
मुरगजीवा पज्जती, पारणा सण्णा य मग्गणाओ य । उओवगोवि य कमसो, वीसं तु परूदणा भणिदा ॥२॥ शुरणनीवाः पर्याप्तयः, प्रारणाः संज्ञाश्च मार्गरणाश्च ।
उपयोगोऽपि च क्रमशः, विशतिस्तु प्ररूपणा भरिणताः ॥२॥
टोका - इहां चौवह मुणस्थान, अठयाणवै जीवसमास, छह पर्याप्ति, दश प्राण, ज्यारि संशा; मार्गणा विर्षे च्यारि गतिमार्गणा, पांच इंद्रियमार्गणा, छह कायमार्गणा, पंद्रह योगमार्गणा, तीन वेदमार्गरणा, च्यारि कषायमार्गणा,पाठ ज्ञानमार्गणा, सात संयममार्गणा, च्यारि दर्शनमार्गणा, छह लेश्यामार्गणा, दोय मध्यमार्गणा, छह सम्यक्त्वमार्गणा, दोय संज्ञिमार्गरणा, दोय आहारमार्गणा, दोय उपयोम – ऐसें ये जीव-प्ररूपणा वीस कहीं हैं।
इहां निरुक्ति करिये है - मुख्यते कहिये जाणिये द्रव्य ते द्रव्यांतर को याकरि, सो गुण कहिये । बहुरि कर्म उपाधि की अपेक्षा सहित ज्ञान-दर्शन उपयोगरूप चैतन्य प्राण करि जीवे हैं ते जीव, सम्यक् प्रकार प्रासते कहिये स्थितिरूप होइ इनि विर्षे
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१-पखंडागम - धवला पुस्तक २, पृष्ठ ४१३, मादा २२२.
Animedita