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गोगारसार जीवका
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वरनेमिचंद्र, ताहि अर्हत्परमेश्वरनि के समूह कौं । सो कैसा है ? अकलंकं कहिए दूर कीया है तरेसठि कर्मप्रकृतिरूप मल कलंक जाने जैसा है। केवल तिसही को नमस्कार करि नाही, बहुरि गुरगरलभूषणोदयं गुणरूपी रतन सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तेई भए भूषण कहिए प्राभरण, तिनका है उदय कहिए समुदाय (जाके) असा प्राचार्य, उपाध्याय, साधुसमूह ताकौं, असें सिद्ध, अरहंत, प्राचार्य, उपाध्याय, साधुरूप पंचपरमेष्ठीनि की नमस्कार करि जीव का प्ररूपण करौ हौं ।
अथवा अन्य अर्थ कहै हैं - प्ररणम्य कहिये नमस्कार करि, कं कहिए किसहि ? जीवस्य प्ररूपणं कहिए जीवनि का निरूपण वा ग्रंथ, ताहि नमस्कार करि कहाँ । सो कैसा है ? सिद्धं कहिए सम्यक् गुरुनि का उपदेश पूर्वकपने करि अखंडित प्रवाहरूप करि अनादिलें चल्या आया है । बहुरि कैसा है ? शुद्धं कहिए प्रमाण ते अविरोधी अर्थ का प्रतिपादकपने करि पूर्वापरते, प्रत्यक्षत अनुमान लें, आगम से, लोक ते निजवचनादि तें विरोध, तिनिकरि अखंडित है । बहुरि कैसा है जिनेंद्रयरनेमिचंद्रजिनेंद्र कहिये सर्वज्ञ, सो है वर कहिए कर्ता जाका, असा जिनद्रवर कहिए सर्वज्ञप्रणीत है। इस विशेषण करि वक्ता के प्रमाणपंना ते वचन का प्रमाणपना दिखाया । बहुरि यथावस्थित अर्थ को नयति कहिए प्रतिपादन करै, प्रकास, सो नेमि कहिए । बहुरि चंद्रयति कहिए आह्लादित करे, विकास शब्द, अर्थ, अलंकारनि करि श्रोतानि के मनरूपी गडूलनि (कमल) कौं, सो चंद्र कहिए जिनेंद्रवर, सोई नेमि, सोई चंद्र असा जि.द्रवरनेमिचन्द्र प्ररूपण है । बहुरि कैसा है ? अकलंक कहिए दूरहि तें छोडया है शब्द-अर्थ-गोचर दोषकलंक जिहि, असा है । बहुरि कैसा है ? गुणरत्नभूषणोदयं --- गुणरत्न जे रत्नत्रयरूप भूषण कहिये आभूषण, तिनकी है उदय कहिए उत्पत्ति वा प्राप्ति, हम मादि जीवनि के जाते, ऐसा गुणरत्नभूषण प्ररूपण है ।
अथवा अन्य अर्थ कहै हैं - चामुंडराय के जीवप्ररूपणशास्त्र का कर्तापने का प्राश्रय करि मंगलसूत्र व्याख्यान करिए है ।
भावार्थ - इस गोम्मटसार का मूलगाथाबंध ग्रंथकर्ता नेमिचन्द्र प्राचार्य है । ताकी टीका कर्णाटकदेशभाषाकरि चामुण्डराय करी है । ताकै अनुसारि केशवनामा ब्रह्मचारी संस्कृतटीका करी है । सो चामुण्डराय की अपेक्षा करि इस सूत्र का अर्थ करिए है । अहं जीवस्य प्ररूपणं यक्ष्यामि मैं जु हौं चामुण्डराय, सो जीव का प्ररूपण रूप ग्रंथ का दिप्पण ताहि कहाँगा । किं कृत्वा ? कहाकरि ? प्रणम्य नमस्कार करि ।
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