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[ गोम्मटसार जीवकाच गाथा १
चौथा अक्षर, ताका च्यारि का अंक, पर रकार दूसरा अक्षर, तरका दोय का अंक, अंकनि की बाई तरफ से गति है, जैसे वर शब्द करि चौबीस का अर्थ भया । बहुरि अपने अद्भत पुण्य के माहात्म्य ते नागेंद्र, नरेंद्र, देवेंद्र का समूह की अपने चरणकमल विर्षे नमाने, सो नेगि महिये। सपना वर्मतीरूपी रखने पलायने विषं सावधान हैं, तातें जैसे रथ के पहिए के नेमि - धुरी है; तैसे सो तीर्थकरनि का समुदाय धर्मरथ विर्षे नेमि कहिये है । बहुरि चंद्रयति कहिये तीनलोक के नेत्ररूप चंद्रवंशी कमलवननि कौं प्रह्लादित करै, सो चंद्र कहिये । अथवा जाके तैसा रूप की संपदा का संपूर्ण उदय होय है, जिसरूप संपदा के तौलन के विष इंद्रादिकनि की सुन्दरता की समर्मीचीन सर्वस्व भी परमाणु समान हलवा ( हलका ) हो है, सो जो नेमि सोई चंद्र, सो नेमिचंद्र, वर • चौवीस संख्या लिए जो नेमिचंद्र, सो वरनेमिचंद्र, जो जिनेन्द्र सोइ वर नेमिचंद्र, सो जिनेन्द्रबरनेमिचंद्र कहिए वृषभादि वर्धमानपर्यंत तीर्थकरनि का समुदाय, ताहि नमस्कार करि जीव का प्ररूपण कही हौं; ऐसा अभिप्राय है। अवशेष सिद्धः आदि विशेषणनि का पूर्वोक्त प्रकार संबंध जानना ।
__ अथवा अन्य अर्थ कहै हैं -- प्रणम्य कहिये नमस्कार करि कं ? किसहि? जिनेन्द्र वरनेमिचंद्र । जयति कहिये जीते, भेदै, विदारै कर्मपर्वतसमूह कौं, सो जिन कहिए । बहुरि नाम का एकदेश संपूर्णनाम विर्षे प्रवत है - इस न्याय करि इन्द्र कहिये इन्द्रभूति ब्राह्मण, ताका वा इन्द्र कहिये देवेंद्र, ताका वर कहिए गुरू, ऐसा इन्द्रवर श्रीवर्धमानस्वामी, बहुरि 'नयति' कहिए अविनश्वर पद को प्राप्त कर शिष्य समूह कौं, सो नेमि कहिये । बहुरि समस्त तत्त्वनि का प्रकाश हैं चंद्रवतं, तातें चंद्र कहिये । जिन सोई इन्द्रवर, सोई नेमि, सोई चन्द्र, ऐसा जिनेन्द्र वरनेमिचंद्र वर्धमानस्वामी ताहि नमस्कार करि जीव का प्ररूपण करौ हौं । अन्य संबंधः पूर्वोक्त प्रकार जानना ।
' अथवा अन्य अर्थ कहै हैं:- प्रगम्य-नमस्कार करि । कं? किसहि ? सिद्ध कहिये सिद्ध भया, या निष्ठित - संपूर्ण भया वा निष्पन्न (जो) होना था सो हवा । वा कृतकृत्य जो करना था, सो जाने कीया। वा सिद्धसाध्य, सिद्ध भया है साध्य जाकै; असा सिद्धपरमेष्ठी बहुत हैं; तथापि जाति एक है, तातै द्वितीया विभक्ति का एकवचन कह्या । तिह करि सर्वक्षेत्र विर्षे, सर्वकाल विर्षे, सर्वप्रकार करि सिद्धनि का सामान्यपने करि ग्रहण करना। सो सर्वसिद्धसमूह कौं नमस्कार करि जीव का
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