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दशम अध्याय ये सात महाशक्ति मातृकारूपसे जीवके शरीरमें सामञ्जस्य रक्षा करती हैं इसलिये ये सब स्त्री ( नारी) संज्ञाके भीतर महिमामयी हैं। महिमा हममें ही प्रतिष्ठित है, अतएव ये सब मेरी विभूति हैं इसलिये ये समस्त भी 'मैं हूँ ॥ ३४ ॥
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् ।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः॥ ३५ ॥ अन्वयः। अहं साम्नां ( मध्ये ) बृहत् साम, तथा छन्दसां (छन्दोविशिष्टाणां मन्त्राणां मध्ये ) गायत्री ( गायत्रीमन्त्रः अस्मि )। अहं मासानां ( मध्ये) मार्गशोषः, ऋतूनां ( मध्ये ) कुसुमाकरः ( वसन्त अस्मि ) ॥ ३५ ॥
अनुवाद। मैं सामवेदके भीतर बृहत् साम, छन्दोंके भीतर गायत्री, मासोंक भीतर मार्गशीर्ष ( अगहन ), और ऋतुओंके भीतर वसन्त हूँ ॥ ३५ ॥
व्याख्या। “साम", कहते हैं चार वेदोंके भीतर एक वेदको * । प्रत्येक वेदमें ही तीन तीन अंश हैं, कर्म, भक्ति, और ज्ञान । सामवेदके भीतर मोक्ष प्रतिपादक जो अंश है, उसी अंशका नाम बृहत्साम है। मैं ही मोक्ष स्वरूप हूं। मेरे ही प्रतिपादन हेतु बृहत् साम मैं हूँ।
"गायत्री"-(गायन्तं त्रायते इति गायत्री ) जिसको गान करनेसे इस भवसागरका आना जाना छूट जाता है। यह गायत्री चौबीस
• वेदके अन्तर्गत गान ( गीत ) का नाम साम है। भगवान वेदव्यासने वेदको विभाग करनेके समय गान (गीत ) समूहको एकत्र करके अलग अलग क्रम अनुसार सजा कर एक अंश किया था, उसीका नाम सामवेद है, जिससे सामवेद गान ( गीत ) प्रधान है। साम गानमें मन क्रम अनुसार लय होते होते अनन्तविस्तृत होता है तत्पश्चात् शब्दब्रह्मको अतिक्रम करता है। इसलिये प्रवाद है-“गानात् परतरः न हि"। वेदके अनुकरणसे ही ग्रीक और लाटीन भाषामें भी ईश्वर सम्बन्धीय गानको साम कहते हैं ।। ३५॥