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श्रीमद्भगवद्गीता आयु सत्त्वबलारोग्य
सुखप्रीतिविवर्द्धनाः। रस्याः स्निग्धाः स्थिरा
हृद्या आहाराः सात्त्विकप्रियाः ॥८॥ अन्वयः। आयुःसत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविर्वद्धनाः ( आयुर्जीवनं सत्त्वमुत्साहः बलं शक्तिः आरोग्यं रोगाराहित्यं सुखं चित्तप्रसादः प्रीतिरमिरुचिः आयुरादीनां विवद्धनाः विशेषेण वृद्धिकराः ते ) रस्याः ( रसवन्तः ) स्निग्धाः ( स्नेहयुक्ताः) स्थिरा: ( देहे सारांशेन चिरकालावस्थायिनः ) ह्रयाः ( दृष्टिमात्रादेव हृदयङ्गमाः ) एवम्भूता आहाराः ( भक्ष्यमोज्यादयः सात्त्विकप्रियाः ) ॥८॥
अनुवाद। आयु, सत्त्वबल, आरोग्य, सुख और प्रीति वृद्धिकारक, रसयुक्त, स्निग्ध, स्थिर और हृद्य आहार सात्विकगणोंको प्रिय हैं ॥८॥
व्याख्या। आयु = जन्म और मृत्यु के बीचमें जो व्यवधान समय है। सस्वबल =जो सत्व, न्याय, धर्म, भक्ति, महत्व पवित्रतादि उत्पन्न करती है वैसी शक्ति। आरोग्य स्वास्थ्य। सुख = जिसके मिलनेसे और कुछ भी पानेकी इच्छा नहीं हतो। प्रीति = हर्ष। यह सब जिससे बढ़ता है। रस्या=रस शब्दमें शुक्र धातु, उस शुक्रधातु को जो बढ़ाता है उसीका नाम रस्या है; यथा, -दुग्धादि, "सद्य वीर्यकरो दुग्धं”। स्निग्धा = जिससे शरीरमें कुछ भी गर्मी उत्पन्न नहीं होती, तथा जो शरीरको स्निग्ध रख करके मज्जाको बढ़ाता है; यथा,-धृत, दुधकी मलाई, नवनीत, तण्डुल, यव, तिल इत्यादि। स्थिरा-औषधि, जिसे खानेसे औषधका काम करता है। जैसे स्तन्य दुग्ध, परोरा, परोराकी पत्ती, इशु-दण्ड इत्यादि । हृद्या जिससे बुद्धिकी क्रियाशक्ति (निश्चयकरणी शक्ति) बढ़ती है; यथा, ब्राह्मीशाक, हिलमोचिकाशाक, थानकुनिशाक, इत्यादि। और सुमिष्ट फल इक्षुचीनी, परमान्न तण्डुल-दुग्ध-घृत-चीनी संयोग करके वो