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श्रीमद्भगवद्गीता मृत्तिका, चक्र, कुम्भकार, उसकी क्रियाशक्ति और संस्कार रहनेसे भी अगर वह घट न गढ़े क्या तौभी घट बन सकता है ? घट निर्माण कार्यमें अगर उसको कोई प्रेरणा करे तबही घट हो सकता है, नहीं तो नहीं हो सकता। इसलिये कहा हुआ है कि कार्य होनेके लिये ये पांचों हेतु और उस कार्यका प्रेरयिता रहना चाहिये। वह प्रेरयिता कौन है ?-ना, ज्ञान, ज्ञेय और परिज्ञाता। "मेरा फलाने द्रव्यका प्रयोजन है" यहां वह प्रयोजन बोध ही "ज्ञान" है, द्रव्य "ज्ञेय" है,
और मैं “परिज्ञाता" हूँ। अगर वह द्रव्य हमारा आवश्यक न होय तो क्या उसके लिये मैं चेष्टा करू ? इसलिये ज्ञान, ज्ञेय और परिज्ञाता ये सब कर्ममें नियुक्त ( वाध्य ) करते हैं। और जब हमें फलाना द्रव्य आवश्यक निश्चय हो गया, तब चक्षु-कर्ण-हस्त-पदादि की संचालनरूप क्रिया द्वारा मैंने उसे कर लिया; यहां वह चक्षु कर्णादि "करण' हैं, संचालन क्रिया ही “कर्म" है, और मैं "कर्ता" हूँ। इसलिये कहा गया है कि करण, कर्म और कर्त्ता ये सब कार्यके आश्रय हैं, अर्थात् इन तीनों के ऊपर कार्य निर्भर करता है ॥ १८ ॥
ज्ञानं कम च कर्ता च त्रिधव गुणभेदतः।
प्रोच्यते' गुणसंख्याने यथावच्छृणु तान्यपि ॥ १६ ॥ अन्वयः। गुणसंख्याने ( गुणाः सम्यक् कार्यभेदेन ख्यायन्ते प्रतिपाद्यन्तेऽस्मिन्निति गुणसंख्यानं सांख्यशास्त्रं तस्मिन् ) ज्ञानं कर्म च कर्ता च गुणभेदतः (प्रत्येक सत्त्वादिगुणभेदन ) त्रिधा एव प्रोच्यते, तान्यपि (ज्ञानादीनि वक्ष्यमाणानि ) यथावत् ( यथाशास्त्रं ) शृणु ॥ १९॥
अनुवाद । सांख्यशास्त्रमें ज्ञान, कर्म और कर्ता प्रत्येक ही सत्त्वादि गुणभेद करके तीन प्रकार के कथित हैं; उन्हें यथाशास्त्र ( कहता हूँ ) श्रवण करो ॥ १९॥
व्याख्या। गुणोंको सम्यक् रूपसे जिससे जाना जाय वही गुणसंख्यान, अर्थात् सांख्यशास्त्र है। उस सांख्यशास्त्रमें सत्व, रज और