Book Title: Pranav Gita Part 02
Author(s): Gyanendranath Mukhopadhyaya
Publisher: Ramendranath Mukhopadhyaya

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Page 358
________________ महात्म्यम् ३४६ ३४६. सूत उवाच । भद्र भगवता पृष्टं यद्धि गुप्ततमं परम् । शक्यते केन तद्वक्तुगीतामाहात्म्यमुत्तमम् ॥२॥ कृष्णो जानाति वै सम्यक् किश्चित् कुन्तीसुतःफलम् । व्यासो वा व्यासपुत्रो वा याज्ञवल्क्योऽथ मैथिलः ॥ ३॥ अन्ये श्रवणतः श्रुत्वा लेशं संकीर्तयन्ति च । तस्मात् किञ्चिद्वदाम्यत्र व्यासस्यास्यान्मया श्रुतम् ॥४॥ सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दनः । पार्थों वत्सः सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत् ॥५॥ सूत बोले। भगवन् ! आपने उत्तम प्रश्न किया, कारण जो परम गुह्यतम है, उसी उत्तम गीता-माहात्म्यके वर्णन करनेकी किसकी मामर्थ्य है? ॥२॥ — श्रीकृष्ण ही गीताका माहात्म्य सम्यक् जानते हैं और अर्जुन, व्यास, शुकदेव, याज्ञवल्क्य एवं मिथिलाराज जनक ये लोग कुछ-कुछ जानते हैं ॥३॥ __ और सब लोग कानमें सुनके लेशमात्र कीर्तन करते हैं। अतएव मैंने व्यासजीके मुखसे जैसा सुना है उसे ही यहां किंचित कहता हुँ ॥४॥ उपनिषत् समूह गाभीवृन्द स्वरूप, गोपालनन्दन श्रीकृष्ण दोग्धा, पृथापुत्र अर्जुन वत्स, सुधीजन भोक्ता और गीतामृत ही महत् ( सुप्रचुर) दुग्धस्वरूप है ॥५॥

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