Book Title: Pranav Gita Part 02
Author(s): Gyanendranath Mukhopadhyaya
Publisher: Ramendranath Mukhopadhyaya

View full book text
Previous | Next

Page 357
________________ श्रीमद्भगवद्गीतामाहाळ्यम् । श्रीगोपालकृष्णाय नमः । [बाजार में वराह पुराणोक्त गीतामाहात्म्य नामसे जो २३ श्लोक की पुस्तक पाई जाती है, देखनेसे मालूम होता है कि वही स्थूलीकृत होकर वैष्णवीय तन्त्रसारोक्त गीतामाहात्म्य हुई है। दोनोंमें ही सूत वक्ता है। उक्त पुराणमें उसने केवल घराके प्रति विष्णुकी उक्तियों का वर्णन किया है और उक्त तन्त्रसारमें उसने गीतामाहात्म्य सम्बन्ध में व्यास-मुख-श्रुत अनुयायी अपना मत श्रीकृष्णके उक्तिके साथ वर्णन किया है। उक्त तन्त्रलारोक्त गीतामाहात्म्य ही यहां दिया गया है। इसमें उक्त पुराणोक्त श्लोकसे जहां जहां एकता है उन्हें पाद-टीकामें “दिखाया जायेगा।। शौनक उवाच । गीतायाश्चैव माहात्म्यं यथावत् सूत मे वद । पुरा नारायणक्षेत्रे व्यासेन मुनिनोदितम् ॥ १॥ * शौनक कहते हैं। हे सूत ! पूर्वमें नारायणक्षेत्र (नैमिषारण्य ) में महामुनि व्यासका कथित गीतामाहात्म्य मेरे पास यथावत् वर्णना करो ॥१॥ * तथा च वराह पुराणे-धरोवाच । भगवन् परमेशान भक्तिरव्यभिचारिणी। प्रारब्धं भुज्यमानस्य कथं भवति हे प्रभो ॥१॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378