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माहात्म्यम्
३६१ गीताथमपि पाठं वा शृणुयादन्तकालतः। महापातकयुक्तोऽपि मुक्तिभागी भवेज्जनः ॥ ५६ ॥ गीतापुस्तकसंयुक्तः प्राणांस्त्यक्त्वा प्रयाति यः। वैकुण्ठ समवाप्नोति विष्णुना सह मोदते ॥ ६० ॥ गीताध्यायसमायुक्तो मृतो मानुषतां व्रजेत् । गीताभ्यासं पुनः कृत्वा लभते मुक्तिमुत्तमाम् ॥ ६१ ॥** गीतेत्युच्चारसंयुक्तो म्रियमाणो गतिं लभेत् ।*** यद्यत् कर्म च सर्वत्र गीतापाठप्रकीतिमत् । तत्तत्कर्म च निर्दोष भूत्वा पूर्णत्वमाप्नुयात् ।। ६२ ॥
यदि कोई मनुष्य महापातक युक्त हो करके भी अन्तकालमें गीतार्थ पाठ वा श्रवण करे तो वह मुक्त हो जाता है ॥ ५६ ॥
जो मनुष्य गीता पुस्तक संयुक्त होकर प्राण त्याग करते हैं वे वैकुण्ठको प्राप्त होकर श्रीविष्णुके साथ प्रानन्द भोग करते हैं ॥ ६ ॥
गीताका अध्याय मात्र युक्त होनेसे मृत व्यक्ति मनुष्यत्व प्राप्त होते हैं और पुनराय गीताभ्यास करके उत्तम मुक्ति लाभ करते
___ जो मृत्युकालमें "गीता" यह शब्द उच्चारण करते हैं ; उनकी गति होती है; सर्वत्र जो-जो कर्म करते समय गीताका पाठ किया जाय, वे सब कर्म निर्दोष होके पूर्णत्वको प्राप्त होते हैं ॥ ६२॥ * गीतार्थ सवणासक्तो महापापयुतोऽपि वा ।
वैकुण्ठं समवाप्नोति विष्णना सह मोदते ॥ १८॥ . ** गीतापाठसमायुको मृतो मानुषतां व्रजेत् ।
गीताभ्यासं पुनः कृत्वा लभते मुक्तिमुत्तमाम् ॥ १६ ।। *** गीतेत्युच्चार सयुक्तो म्रियमाणो गतिं लभेत् ॥ १७ ॥