Book Title: Pranav Gita Part 02
Author(s): Gyanendranath Mukhopadhyaya
Publisher: Ramendranath Mukhopadhyaya

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Page 368
________________ माहात्म्यम् ३५६ इत्येतानि जपेन्नित्यं नरो निश्चलमानसः। ज्ञानसिद्धिं लभेन्नित्यं तथान्ते परमं पदम् ॥ ५१ ॥ पाठेऽसमर्थः सम्पूर्णे तदद्धं पाठमाचरेत् । तदा गोदानजं पुण्यं लभते नात्र संशयः ।। ५२ ॥** त्रिभागं पठमानस्तु सोमयागफलं लभेत्। षड़शं जपमानस्तु गङ्गास्नानफलं लभेत् ॥ ५३ ।।*** तथाध्यायद्वयं नित्यं पठमानो निरन्तरम् । . .. इन्द्रलोकमवाप्नोति कल्पमेकं वसेत् ध्रुवम् ।। ५४ ॥ .. - अर्द्धमात्रा, चिता, नन्दा, भवघ्नी, भ्रान्तिनाशिनी, वेदत्रयी, परानन्दा, तत्त्वार्थज्ञानमन्जरी-जो व्यक्ति निश्चलमनसे यह सब नाम नित्य जपते हैं, वे नित्य ज्ञानसिद्धि लाभ करते हैं और अन्तमें परम पदको प्राप्त होते हैं ॥ ५० ॥ ५१ ।। ___ यदि सम्पूर्ण पाठ करनेमें असमर्थ व्यक्तिगण गीताका आधा पाठ करें तो वे निःसंशय गोदानज पुण्य लाभ करेंगे इसमें संशय नहीं है ॥ ५२ ॥ त्रिभाग पाठकारी सोमयागका फल पाते हैं और षड़श जपकारी गङ्गा लानका फल लाभ करते हैं ॥ ५३ ॥ नित्य निरन्तर दो अध्याय पाठकारी इन्द्रलोकको प्राप्त होता है और वहां निश्चित रूपसे एक कल्प वास करता है ।। ५४ ॥ * योऽष्टादशजपो नित्यं नरो निश्चलमानसः । ज्ञानसिद्धिं स लभते ततो याति परं पदम् ॥ १० ॥ ** पाठेऽसमर्थः सम्पूर्णे ततोऽद्ध पाठमाचरेत् । तदा गोदानजं पुण्यं लभते नात्र संशयः ॥ ११ ॥ *** त्रिभागं पठमानस्तु गङ्गास्नानफलं लभेत् । षडंशं जपमानस्तु सोमयागफलं लभेत् ॥ १२ ॥

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