Book Title: Pranav Gita Part 02
Author(s): Gyanendranath Mukhopadhyaya
Publisher: Ramendranath Mukhopadhyaya

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Page 369
________________ ३६० श्रीमद्भगवद्गीता एकमध्यायक नित्यं पठते भक्तिसंयुतः । रुद्रलोकमवाप्नोति गणो भूत्वा वसेच्चिरम् ॥ ५५ ॥ अध्यायाद्धं च पादं वा नित्यं यः पठते जनः। प्रप्नोति रविलोकं स मन्वन्तरसमाः शतम् ॥ ५६ ॥** गीतायाः श्लोकदशकं सप्त पञ्च चतुष्टयम् । त्रिद्वयेकमेकमद्धं वा श्लोकानां यः पठेन्नरः। चन्द्रलोकमवाप्नोति वर्षाणामयुतन्तथा ॥ ५७ ॥*** गीतार्थमेकपादं च श्लोकमध्यायमेव च। स्मरंस्त्यक्ता जनो देहं प्रयाति परमं पदम् ॥ ५८ ॥**** जो भक्तियुक्त हो करके नित्य एक अध्याय पाठ करते हैं, वे रुद्रलोक प्राप्त होकर गण होके दीर्घ काल तक वहां वास करते हैं ॥ ५५ ॥ जो लोग नित्य एक अध्यायका आधा वा चतुर्थाश पाठ करते हैं वे लोग रविलोकको प्राप्त करके शत मम्वन्तर वहां रहते हैं ॥ ५६ ॥ जो नर गीताका दस, सात, पाँच, चार, तीन, दो एक अथवा आधा श्लोक भी पाठ करते हैं वे अयुत वर्ष धरके चन्द्रलोकको प्राप्त होते हैं ॥ ५७॥ जो गीतार्थका एकपाद, एक श्लोक किम्बा एक अध्यायका स्मरण करते-करते देह त्याग करते हैं वे परम पदको प्राप्त होते हैं ॥८॥ * एकाध्यायं तु यो नित्यं पठते भक्तिसंयुतः । रुद्रलोकमवाप्नोति गणो भूत्वा वसेच्चिरम् ॥ १३ ॥ ** अध्यायं श्लोकपादं वा नित्यं यः पठते नरः। स याति नरता यावन्मन्वन्तरं वसुन्धरे ॥ १४ ॥ *** गीतायाः श्लोकदशकं सप्त पञ्च चतुष्टयम् । द्वौ त्रोणेकं तदध वा श्लोकानां यः पठेन्नरः । चन्द्रलोकमवाप्नोति वर्षाणामयुतं ध्र वम् ॥ १५ ॥ **** गीतार्थ ध्यायते नित्यं कृत्वा कर्माणि भूरिशः। जोपन्मुक्तःस विज्ञेयो देहान्ते परमं पदम् ॥ १९ ॥

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