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३६२ ___ श्रीमद्भगवद्गीता
पितनुहिश्य यः श्राद्धे गीतापाठ करोति हि। सन्तुष्टाः पितरस्तस्य निरयाद् यान्ति स्वर्गतिम् ॥ ६३ ॥ गीतापाठन सन्तुष्टाः पितरः श्राद्धतर्पिताः। पितृलोकं प्रयान्त्येव पुत्राशीर्वादतत्पराः ॥ ६४ ॥ गीतापुस्तकदानं च धेनुपुच्छसमन्वितम् । कृत्वा च तहिने सम्यक् कृतार्थों जायते जनः ॥६५॥ पुस्तकं हेमसंयुक्तं गीतायाः प्रकरोति यः। दत्त्वा विप्राय विदुषे जायते न पुनर्भवम् ।। ६६ ॥ शतपुस्तकदानं च गीतायाः प्रकरोति यः। स याति ब्रह्मसदनं पुनरावृत्तिदुर्लभम् ॥ ६ ॥ गीतादानप्रभावेन सप्तकल्पमिताः समाः। विष्णुलोकमवाप्यान्ते विष्णुना सह मोदते ॥ ६८ ॥
जो पितृगणके उद्देशसे श्राद्ध में गीता पाठ करते हैं, उनके सन्तुष्ट पितृगण निःसन्देह नरकसे स्वर्गको प्राप्त होते हैं ।। ६३ ।।
श्राद्ध तर्पण कृत पितृगण गीता पाठसे सन्तुष्ट होके पुत्रको आशीर्वाद करते करते पितृलोकमें गमन करते हैं । ६४ ॥ __श्राद्ध दिनमें धेनु पुच्छ सहित गीता पुस्तक दान करके कृतीजन सम्यक रूपसे कृतार्थ होते हैं । ६५॥
जो मनुष्य गीताकी पुस्तक हेम संयुक्त करके विद्वान विप्रको दान करते हैं उनको पुनराय संसारमें जन्मग्रहण करना नहीं पड़ता ॥ ६६ ॥
जो गीताकी शत पुस्तक दान करते हैं वह ब्रह्मलोकमें गमन करते हैं, वहाँसे उनको पुनरावृत्ति नहीं होती ।। ६७॥ __ गीता दानके प्रभावसे अन्तकालमें सप्त कल्प परिमित वत्सर विष्णुलोक प्राप्त होकर श्रीविष्णुके साथ आनन्द उपभोग करते हैं ॥ ६८॥