Book Title: Pranav Gita Part 02
Author(s): Gyanendranath Mukhopadhyaya
Publisher: Ramendranath Mukhopadhyaya

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Page 361
________________ श्रीमद्भगवद्गीता गीताशास्त्रं न जानाति नाधमस्तत्परो जनः । धिक प्रारब्धं प्रतिष्ठां च पूजा मानं महत्त्वमम् ।। १६ ॥ गीताशास्त्रे मतिर्नास्ति सर्व तन्निस्फलं जगुः । धिक् तस्य ज्ञानदातारं व्रतं निष्ठा तपो यशः ॥१७॥ गीतार्थपठनं नास्ति नाधमस्तत्परो जनः। गीतागीतं न यज्ञानं तद्विद्धयासुरसम्मतम् ॥ १८ ॥ तन्मोघं धर्मरहितं वेदवेदान्तगर्हितम् । तस्माद्धर्ममयी गीता सर्वज्ञानप्रयोजिका। सर्वशास्त्रसारभूता विशुद्धा सा विशिष्यते ॥ १६ ॥ योऽधीते विष्णुपर्वाहे गीतां श्रीहरिवासरे। स्वपन जाप्रन् चलंस्तिष्ठन् शत्रुभिर्न स हीयते ॥ २० ॥ जो भादमी गीताशास्त्र नहीं जानता है उससे बढ़के अधम कोई नहीं है, उसकी प्रारब्ध, प्रतिष्ठा, पूजा, मान और महत्त्वको विकार है ॥ १६॥ . गीताशास्त्रमें जिसकी मति नहीं है उसके सब कर्म निष्फल हैं, इसके ज्ञानदाता, व्रत, निष्ठा, तपस्या और यशको धिक्कार है ॥ १७ ॥ ___ जिसका गीतार्थ पठन नहीं है उससे बढ़के अधम और कोई नहीं ' है। जो ज्ञान गीतामें वर्णित नहीं हैं, उन्हें असुर सम्मत जानना; वे सब व्यर्थ, धर्मरहित और वेद वेदान्तगर्हित हैं । अतएव वह धर्ममयी, सर्वज्ञानप्रदायिनी, सर्वशास्त्रको सारभूता, विशुद्धा गीता विशिष्टा (प्रशंसाकी योग्य ) है ॥ १८ ॥ १६ ॥ जो मनुष्य विष्णु-पर्वदिन तथा हरिवासर ( एकादशी) में गीता अध्ययन करता है, वह निद्रावस्था, जानदवस्था, चलनावस्या किम्बा स्थिति अवस्थामें शत्रगणसे हीनता प्राप्त नहीं होता ॥२०॥

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