Book Title: Pranav Gita Part 02
Author(s): Gyanendranath Mukhopadhyaya
Publisher: Ramendranath Mukhopadhyaya

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Page 353
________________ ३४४ श्रीमद्भगवद्गीता दीपेन" तुम्हारा “अज्ञानजं तमः” का नाश करेंगे, एकमात्र इस सत्त्वप्रसादसे ही तुम "परा शान्ति” और 'शाश्वतं स्थान' पाओगे। इस प्रकारसे योगेश्वर सत्त्वको सारथी करके धनुधर होनेसे श्री (शरीरकी योगप्रभा), विजय (योगसिद्धि), भूति (विभूति ), एवं ध्रुवा नीति (अव्यभिचारिणी ब्राह्मीस्थिति, जीवन्मुक्ति) होगी। यह सर्वथा निश्चय है। इसमें कुछ भी सन्देह नहीं है । इसीके साथ मनमें इसे भी स्मरण रक्खो-'यस्य देवे परा भक्तिर्यथा देवे तथा गुरौ। तस्येते कथितार्थाः प्रकाशन्ते महात्मनः॥' अर्थात् जिसको देवताके प्रति पराभक्ति है, और देवताके प्रति जैसी-गुरुके प्रति भी वैसी ही भक्ति है, उसी महात्मामें यह सब कथित अर्थ प्रकाश पाता है ॥ ७८॥ . इति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्र 'श्रीकृष्णार्जुनसंवादे मोक्षसंन्यासयोगो नाम अष्टादशोऽध्यायः। .

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