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२६० . श्रीमद्भगवद्गीता की प्रेरणासे मुमको करना पड़ता है, इस प्रकार मनका भाव) है, उसको असत् कहते हैं । वह असत् क्रिया इह और परकालमें (वधिर को सुस्वर सुनाकर सुखी करने के सदृश ) भी कोई मंगल नहीं दे सकती ॥ २८ ॥
रजस्तमोमयीं त्यक्त्वा श्रद्धा सरवमयी श्रितः । तत्वज्ञानेऽधिकारी स्यादिति सप्तदशे स्थितं ॥ -श्रीधर
इति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्याया योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुन संवादे श्रद्धात्रयविभागयोगो नाम
, सप्तदशोऽध्यायः