________________
१३८
श्रीमद्भगवद्गीता विपरिणमते (अवस्थान्तर प्राप्त होता है ), अपक्षीयते (क्षय प्राप्त होता है), विनश्यति (विनाश प्राप्त होता है )-यह षड्विकार सम्पन्न है, उसे स्थूल शरीर कहते हैं ।
जो शरीर अपञ्चीकृत पञ्चमहाभूत द्वारा कृत (गठित ), सत् असत् कमसे उत्पन्न, सुख दुःखादि भोगका साधन ( करण ) एवं पन्चज्ञानेन्द्रिय पचकर्मेन्द्रिय पञ्चप्राण मन तथा बुद्धि इन सप्तदश कलायुक्त है, वही सूक्ष्म शरीर है।
और जो निर्वाच्य अनादि अविद्यारूप, स्थूल तथा सूक्ष्म दोनों शरीरका कारणमात्र, स्वस्वरूप ज्ञानका आवरक तथा निर्विकल्परूप है। वही कारण शरीर है। ___ इन तीनों शरीरकी क्रिया अनुसार जीवको तीन अवस्थाएं भोगनी पड़ता हैं। वह तीनों अवस्था यह हैं-जाग्रत, स्वप्न तथा सुषुप्ति। जिस समय श्रोत्रादि ज्ञानेन्द्रिय द्वारा शब्दादि विषय सहयोगसे ज्ञानोत्पत्ति होती है, तबही जाग्रदवस्था है। यह स्थूल शरीर की क्रिया है। स्थूलशरीराभिमानी आत्मा ही विश्व है, इस प्रकार कहा जाता है। __जाग्रदवस्थामें जो देखा जाता है, जो सुना जाता है, उससे उत्पन्न हुई वासना द्वारा निद्रा समयमें जो प्रपञ्च (प्रत्यक्ष्य ) दिखाई पड़ते हैं, वही स्वप्नावस्था है। यह सूक्ष्म शरीर की क्रिया है। यह सूक्ष्म शरीराभिमानी श्रात्मा तैजस है, ऐसा कहा जाता है। ... "मैं कुछ भी नहीं जानता, मैं सुखसे सोता हूँ" - यही सुषुप्तिअवस्था है। यह कारण शरीरकी क्रिया है। यह कारण शरीराभिमानी श्रात्मा प्राज्ञ है, ऐसा कहा जाता है।
इसी तरह शरीरके कोश पांच हैं;-अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमव और आनन्दमय। .