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श्रीमद्भगवद्गीता .. शरीरके सम्बन्धमें यह जो कहा गया, उसे समझानेके लिये और भागेके छठवें और सातवें श्लोकमें जो क्षेत्रका वर्णन किया गया है, उसे समझनेके सुभीताके लिये इस स्थान पर चौबीस तत्वोंका उत्पतिप्रकरण स्थूल-सूक्ष्म-कारण शरीर-विवरण, पञ्चकोश तथा अवस्थात्रय का परिचय, और क्षेत्रज्ञ वा आत्माका लक्षण इत्यादि श्रीमत् शङ्कराचार्य देवकी उक्ति अनुसार संक्षेपमें दिया गया है।__ भगवान् शंकराचार्य्यने तत्वोत्पत्तिप्रकार कहनेके पहले ही कहा है कि-"ब्रह्माश्रया सत्त्वरजस्तमोगुणात्मिका माया अस्ति”। उत्पत्तिप्रकार कहनेके लिये इस अंशको मान लेना पड़ा। इस अंशको ही शास्त्रका मान लेनेका विषय वा स्वीकारोक्ति कहते हैं। प्रत्येक शास्त्र में प्रतिलोम प्रकरणके सिद्धान्त विषयमें इस प्रकार स्वीकारोक्ति बिना गत्यन्तर नहीं है। इस प्रकार स्वीकारोक्तिकी सत्यता जानी जाती है, परन्तु प्रमाण देकर समझाई नहीं जा सकती। इसलिये इसको अप्रमेय सत्य कहते हैं।
इस त्रिगुणात्मिका मायासे आकाश बना; उसके बाद आकाशसे वायु, वायुसे तेज, तेजसे आप (जल) और आपसे पृथ्वी, इस प्रकार फचतत्वकी उत्पत्ति होती है।
इन सब पञ्चतत्वोंमेंसे आकाशके सात्विक अंशसे श्रोत्रेन्द्रिय उत्पन्न हुई, वायुके सात्विक अंशसे त्वगिन्द्रियकी उत्पत्ति, अग्निके सात्विक अंशसे चक्षुरिन्द्रियकी उत्पत्ति, जलके सात्विक अंशसे रसनेन्द्रिय और पृथ्वीके सात्विक अंशसे घ्राणेन्द्रिय उत्पन्न हुई है। और इन सब पचतत्वोंके एकत्रित सात्विकाशसे मन, बुद्धि, अहंकार और चित्त यह सब अन्तःकरण सम्भूत हुए हैं।
इन सब पञ्चतत्वोंमें से आकाशके राजसांशसे वागिन्द्रिय, वायुके राजसांशसे पाणीन्द्रिय, अग्निके राजसाशसे पादेन्द्रिय, जलके राजसांश से उपग्थेन्द्रिय और पृथ्वीके राजसांशसे गुह्य न्द्रिय की उत्पत्ति है।