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११२ ___श्रीमद्भगवद्गीता उसी स्थानमें भाकरके विलयको प्राप्त होता है इसलिये उसे चक्र कल्पना करके एक दिशामें रख दिया। भ्रम-मय होनेसे भी यह जगत् देखने में अतीव सुन्दर है; और अव्यक्तसे खिल करके व्यक्त सरीखे भान दिखलाकर पुनः अव्यक्तमें मिलकर अदृश्य हो जाता है। इसलिये भावुक लोग जगतका वस्तुशून्यता हेतु सुदर्शन चक्र नाम दिया है।
यह रूप बड़ा चमकदार, बार बार आत्महारा करता है इस करके आघातकी शक्तिको "गदा” नाम दे करके एक दिशामें रख दिया है। जगत्में 'दगा' के सिवा और कुछ भी नहीं है, इसलिये मनीषी लोगों ने इसका सांकेतिक शब्द "गदा" रक्खा है।
पद्म-'पद्' शब्दमें स्थान और 'म' शब्दमें ब्रह्मा, विष्णु, शिव, यम, काल और चन्द्र है। इन सबके एकत्र समावेश स्थानको पद्म कहते हैं। यह जगत् (सृष्टि, पुष्टि, व्यवधान, संयम और संहार करनेवाले इन्द्रजालके खेल सदृश ) रूपकी छटामें सबको मोहित कर रक्खा है; इसलिये तत्त्वदर्शी ऋषियोंने इसका नाम पद्म रक्खा है; इसका एक और नाम पड्वज भी है, क्योंकि मायामय पडसे उत्पन्न होता है। अतएव इस जगतका निदर्शन स्वरूप 'पद्म' को भी एक दिशामें रख दिया है।
ये चारों चार दिशामें अवस्थित हैं अर्थात् चतुर्भुजसे पकड़े हुए हैं, इसलिये शंख-चक्र-गदा-पद्मधारी किरीट शोभित वासुदेव हैं अर्थात् इस मिथ्या मायामय विश्व-संसारको जो धारण कर रहे हैं, वही वासुदेव हैं। वासुदेवका यह रूप अत्यन्त गभीर और अपरिज्ञय है। अत्यन्त दूरत्व हेतु, हकशक्तिकी दुर्बलतासे रूपशून्य आकाशमें जैसा नीलिमाका पट देखा जाता है, यह रूप उससे भी गभीर है। सूक्ष्मातिसूक्ष्म, जो अनुभवमें आता ज्ञानमें आता और समझमें आता है, उससे भी दूर दूरान्तर अज्ञ य गाढ़ अन्धकारमें डूबा हुआ रहनेसे चिक्कन काला नामा दिये हैं। "साधकानां हितार्थाय ब्रह्मणो रूप