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एकादश अध्याय
६६ स्रष्टा ब्रह्माजीकी भी उसी अवस्था है। अष्टिके पहले और संहारके पश्चात् जो एक विश्राम अवस्था है, उसीको हिरण्यगर्भ नाम दिया गया है। हिरण्य रूपका राजा है; सुवर्गको देखनेसे जिस प्रकार उसके रूपसे मोहित होना पड़ता है उसी तरह यह विश्व भी रूपराशि सुवर्गसे भरा हुआ है। जिसकी ओर ताकोगे वही तुमको मोहित करेगा। जो देव मकड़ेके जाल सदृश इस विश्वको सृष्टिके पहले और संहारके पश्चात् अपने गर्भमें धारण कर रखते हैं, उसी देवका नाम हिरण्यगर्भ वा ब्रह्मा है। ___ यह जो इतना बड़ा विश्व देखते हो, मन भी जिसकी सीमा करने में हार जाता है, यह सुबृहत् विश्व भी ब्रह्माजीके पेटके भीतर रहता है। इसीसे समझ लो ब्रह्माजीका आकार कितना बड़ा है। और भी विश्राम कालमें ब्रह्माजी जिसके ऊपर विश्राम करते हैं, वह विश्रामभूमिका वा ब्रह्माजीका विश्रामवाला आधार कितना बड़ा और कसा है, वह मन बुद्धि और चित्तकी तो बात ही नहीं, परन्तु ब्रह्मदेवताके भी धारणाके अतीत है। इसलिये ब्रह्मासे भी वह गरीयस ( बड़ा) है। 'आधारके ऊपर आधेयकी उत्पत्ति और स्थिति (जैसे पृथिवीके ऊपर स्वेदज, अण्डज, उद्भिज्ज और जरायुज प्रजा हैं ) होनेसे आधार आधेयका आदि और कर्ता है। विश्वके उत्पादक और धारक होनेसे जगतके देवता ब्रह्माजी हैं। इसलिये वह ब्रह्माजीका आधार देवेश नाम पाया है।
सत् =जो विद्यमान । असतू जो अविद्यमान । अक्षर = जिसका क्षय व्यय नहीं। तत्-विष्णुका परमपद; और परं ब्रह्म है।
साधक! अब व्यापार क्या है यह भी देख लो! विद्यमानतुम्हारे जाननेमें जो कुछ है; अविद्यमान तुम्हारे अनजानमें जो कुछ है; वह सब ब्रह्मामें और उनके गभस्थ हिरण्यमें (अर्थात् विश्वमें और विश्वका कोष स्वरूप हिरण्यगर्भ में ) रह गया। परन्तु उनका वह