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श्रीमद्भगवद्गीता "प्रजापति"-जीव-संसारका कर्ता (मालिक), जनयिता वा पिता, जिनसे प्रजा उत्पन्न होती है, जैसे दक्ष, कईम, कश्यप इत्यादि । यह भी तुम हो। इन सबके पिता ब्रह्मा जी हैं। पुनः वह ब्रह्मा तुम्हारे नाभिकमलसे उत्पन्न हुये हैं; अतएव तुम प्रपितामह हो। . इसलिये, हे पिता! हे पाता! हे धाता ! हे रक्षयिता ! तुमको नमस्कार ! नमस्कार !! पुनः तुमको बार बार नमस्कार है !!! ॥३६ ॥
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते
नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व। अनन्तवीर्य्यामितविक्रमस्त्वं
सर्व समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः॥४०॥ अन्वयः। हे सर्व ( सर्वात्मन् ) ! ते ( तुभ्यं ) पुरस्तात् ( सम्मुखे ) अथ पृष्ठतः ( पश्चात् ) नमः, ते ( तब ) सर्वतः एष ( सर्वासु दिक्षु ) नगः अस्तु; अनन्तवीर्यामितविक्रमः ( अनन्तं वीर्य सामथ्यं यस्य तथा अमितो विक्रमः पराक्रमो यस्य सः एवम्भूतः) त्वं सर्व (समस्तं जगत् ) समाप्नोषि ( सम्यगेकेनात्मना व्याप्नोपि ); ततः (दस्मात् ) सर्वः । सर्वस्वरूपः असि ॥ ४० ॥
अनुवाद। हे सर्वात्मन् ! तुमको पुरोभागमें और पश्चात् भागमें नमस्कार है, तुम्हारी समस्त दिशाओं में नमस्कार है। अनन्त सामर्थ्य और अमित पराक्रमशाली तुम समस्त जगत्में सम्यक् रूपसे व्याप्त हो रहे हो, अतएव तुम सर्वस्वरूप हो ॥४०॥
व्याख्या। तुम्हारी पूर्व दिशामें नमस्कार करता हूँ, तुम्हारी पश्चिम दिशामें नमस्कार तुम्हारी उत्तर, दक्षिण, नैऋत, ईशान, वायु, अग्नि, अधः और ऊर्व समस्त दिशामें ही नमस्कार है। हे नाथ ! यह जो सर्व (विश्व ) है, यह तुमसे ही प्रकाश होकर पुनः तुममें ही विलीन होता है। इन सबका जो विक्रम और वीर्य है वह अति तुच्छ अर्थात् मित है ! और तुम ? जैसे जलमें रस, उस प्रकारसे तुम इस सर्वमें व्याप्त हो; और जैसे रसमें जल, उसी तरह सर्व तुममें