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મંગલાચરણ
( श्री सिद्धनी स्तुति खडिल्ल छंह )
अविनासी अविकार परमरसधाम हैं।
समाधान सरवंग सहज अभिराम हैं ।। सुद्ध बुद्ध अविरुद्ध अनादि अनंत हैं।
जगत शिरोमनि सिद्ध सदा जयवंत हैं ॥४॥
शब्दार्थः- सरपंग ( सर्वांग ) = सर्व खात्मप्रदेशे . अभिराम=प्रिय.
અર્થ:- જે નિત્ય અને નિર્વિકાર છે, ઉત્કૃષ્ટ સુખનું સ્થાન છે, સહજ શાંતિથી 'सर्वांगे सुंदर छे. निर्दोष छे, पूर्णज्ञानी छे, विरोधरहित छे, अनादि अनंत छे; ते લોકના શિખામણિ સિદ્ધ ભગવાન સદા જયવન્ત હો! ૪.
( श्री साधु स्तुति सवैया खेत्रीसा ) ग्यानकौ उजागर सहज-सुखसागर,
सुगुन-रतनागर विराग-रस भय है। सरनकी रीति हरै मरनकौ न भै करै,
करनसौं पीठि दे चरन अनुस है ।। धरमकौ मंडन भरमको विहंडन है,
परम नरम हैकै करमसौं लय है। ऐसौ मुनिराज भुवलोकमैं विराजमान,
निरखि बनारसी नमस्कार कर्णौ है ।। ५॥
परमरस=आत्मसुख.
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शब्दार्थः- अभगर=प्राश5. २तनागर = ( २त्ना४२ ) =मशिखोनी जाए. भै (लय ) = 3२. ४२न (४२७) इन्द्रिय यरन ( य२५ ) ચારિત્ર. વિહંડન प्रेमण अर्थात् दुषायरहित भुव (लू) = पृथ्वी.
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વિનાશ કરનાર. નરમ
૧. જેમનો પ્રત્યેક આત્મપ્રદેશ વિલક્ષણ શાંતિથી ભરપૂર છે.
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