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मारवाड़ का इतिहास
अजितसिंहजी के पुत्र महाराजा अभयसिंहजी के समय के बने तीन काव्यों में से भट्ट जगजीवन का बनाया 'अभयोदय' संस्कृत में और कविया शाखा के चारण करणीदान का बनाया 'सूरजप्रकाश' और रतनू शाखा के चारण वीरभाण का बनाया 'राजरूपक' डिंगल भाषा में हैं । सूरजप्रकाश के कर्ता ने ही अपने काव्य के आशय को १२६ पद्धरी छन्दों में लिख कर उसका नाम 'बिड़दसिणगार' रख दिया था। इन्हीं दोनों काव्यों के पुरस्कार में महाराजा ने करणीदान को २००० रुपये वार्षिक आय की जागीर दी थी । परन्तु अभाग्यवश वीरभाण को शीघ्र ही मारवाड़ छोड़ कर चला जाना पड़ा और इसीसे उसका काव्य महाराजा अभयसिंहजी के सामने पेश न होसका । अन्त में करीब १०० वर्ष बाद जब महाराजा मानसिंहजी ने उस काव्य को देखा, तब उन्होंने कवि के आभार से उऋण होने के लिये वीरभाण के वंशज का पता लगवाकर, उसके अशिक्षित होने पर भी, उसे ५०० रुपये वार्षिक आय की जागीर दी ।
'सूरजप्रकाश' के एक छप्पर्य से प्रकट होता है कि महाराजा अभयसिंहजी ने १४ लाख पसाब' दिए थे।
इन्हीं के समय सांदू शाखा के चारण कवि पृथ्वीराज ने 'अभयविलास' नाम का भाषा-काव्य लिखा था।
महाराजा बखतसिंहजी की डिंगल भाषा में लिखी एक देवीस्तुति और कुछ भजन मिले हैं।
महाराजा भीमसिंहजी के समय रामकर्ण कवि ने 'अलङ्कारसमुच्चय' नामक भाषा-ग्रन्थ लिखा था ।
ऊपर जिन महाराजा मानसिंहजी का उल्लेख आ चुका है, वह भी विद्वानों और कवियों के आश्रयदाता होने के साथ ही स्वयं भी संस्कृत और भाषा के
'बारठ नरहर बगस एक लख प्रथम उजागर | कवि आढा किशन नूं वे लख दुवौ क्रीतवर ॥ अभंग खेम धधवाड़ दोय लख हाथे दीधा । हरि संढायच हेक लाख ब्रव बहु जस लीधा ॥ लह हेक लाख महडू बलू लख त्रण सांदू नाथ लह । आढा महेस हू रीम अति पांच लाख दीधा सुपह ॥ १॥
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