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मारवाड़ का इतिहास
जोधपुर के राष्ट्रकूट नरेशोंका विद्याप्रेम और उनकी दानशीलता ।
जोधपुर ( मारवाड़) के राठोड़ नरेश भी अपने पूर्वजों के समान ही विद्वानों और कवियों के आश्रयदाता थे और अपने समय के कवियों आदि का दान और मान से सत्कार करते रहते थे । इसके अलावा इनमें के कुछ नरेश स्वयं भी अच्छे विद्वान थे और उनके या उनके वंशजों के बनाएं या बनवाएँ ग्रन्थ इस समय तक भी आदर की दृष्टि से देखे जाते हैं ।
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प्राचीन ख्यातों और प्राचीन काव्यों से प्रकट होता है कि राजा गजसिंहजी ने अपने समय के १४ कवियों को 'लाख पसावै' दिया था । इन्हीं के समय हेम कवि' ने 'गुण भाषाचित्र' और गाडण शाखा के चारण कवि केशवदास ने 'गुण रूपक' नामक काव्य लिखे थे । ये दोनों काव्य डिंगल भाषा के हैं और इनमें राजा गजसिंहजी के वीर - चरित्र का वर्णन है । उपर्युक्त कवियों में से पहले कवि को कितना पुरस्कार मिला यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता । परन्तु दूसरे कवि को १५०० रुपये वार्षिक आय की जागीर मिली थी ।
राजा गजसिंहजी के उत्तराधिकारी महाराजा जसवन्तसिंहजी प्रथम विद्वानों के आश्रयदाता होने के साथ ही स्वयं भी विद्वान थे । इनके लिखे भाषा-प्रन्थों के नाम इस प्रकार हैं:
(१) भाषाभूषण
अलङ्कार
अर्थात्-जोधपुर के वीरों ने हैफा और जार्डन में किए अपने वीरतापूर्ण कार्यों से अपने पूर्वजों के तुङ्गां, मेड़ता और पाटन में किए युद्धों की याद करवा दी । इस रिसाले के वीरों ने जो प्रशंसा प्राप्त की है, वह मारवाड़ की वीरतापूर्ण प्राचीन गाथाओं के अनुकूल ही है ।
१. जोधपुर बसाने वाले राव जोधाजी की प्रपौत्री ( राव दूदाजी की पौत्री और रत्नसिंहजी की पुत्री ) मीरांबाई के भजन और नरसीजी का मायरा आदि सर्व प्रसिद्ध हैं । इनका विवाह मेवाड़ के राणा संग्रामसिंह ( प्रथम ) के ज्येष्ठ पुत्र भोजराजजी के साथ हुआ था । २. राव वीरमजी और उनके पुत्र गोगादेव के यशोवर्णन में ढाढी जाति के कवि बहादर ने डिंगल भाषा का "वीरमायण” नामक काव्य लिखा था ।
३. राजस्थान में कवियों को 'लाख पसाव' देने का यह नियम था कि, जिसे यह पुरस्कार दिया जाता था, उसे वस्त्र, आभूषण, हाथी, घोड़ा और कमसे कम एक हज़ार से पांच हज़ार तक वार्षिक आयकी जागीर दी जाती थी ।
४. हेम कवि ने 'गुणरूपक' नाम का एक अन्य काव्य भी लिखा था ।
५. यह ग्रन्थ नागरी प्रचारिणी सभा, बनारस द्वारा प्रकाशित हुआ है ।
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