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मारवाड़ का इतिहास
कर्नल टॉड ने अपने 'राजस्थान के इतिहास' में महाराजा बखतसिंहजी को राजस्थान ( राजपूताने ) में होनेवाले नरेशों में सर्वश्रेष्ठ और आदर्श नरेश माना है ।
कर्नल टॉड ने अपने इतिहास में एक स्थान पर यहां तक लिखा है कि:
"मुगल बादशाह अपनी विजयों में से आधी के लिये राठोड़ों की एक लाख तलवारों के एहसानमंद थे।"
इस बीसवीं शताब्दी के यूरोपीय महायुद्ध में भी, अन्य राठोड़-नरेशों की सहायता के अलावा, जोधपुर-नरेश महाराजा सुमेरसिंह जी ने अपनी १६ वर्ष की अवस्था में और ईडर-नरेश महाराजा प्रतापसिंहजी ने अपनी ६६ वर्ष की आयु में रण-स्थल में पहुंच, जो क्षत्रियोचित आदर्श उपस्थित किया था, वह भी किसी से छिपा नहीं है। ___ इससे प्रकट होता है कि राष्ट्रकूट ( राठोड़ ) सदा से ही प्रतापी और वीर होते चले आए हैं, और इसी से ये राजस्थान में 'रणबंका राठोड़' के नाम से प्रसिद्ध हैं।
आगे राष्ट्रकूटों की वैयक्तिक वीरताओं के कुछ उदाहरण दिए जाते हैं--
अकबर नामे में लिखा है कि-'राव मालदेव के राज्य में जिस समय अकबर की सेना ने मेड़ता नामक नगर पर चढाई की, उस समय जैतावत राठोड़ देवीदास ने अपने ४०० सवारों के साथ किले से निकल विशाल शाही सेना का ऐसी वीरता से मुकाबला किया कि रुस्तम का नाम और निशान दुनिया से मिटा दिया।'
उसी इतिहास से प्रकट होता है कि अकबर के चढ़ाई करने पर जब महाराणा उदयसिंह को पहाड़ों में जाना पड़ा, तब चित्तोड़ के किले की रक्षा का भार मेड़तिया राठोड़ जैमल ने ग्रहण किया और अपने जीते जी अकबर को सफल न होने दिया। परन्तु उसके मारे जाते ही किला बादशाह के अधिकार में चला गया ।
१. (क्रुक संपादित) भा० २ पृ० १०५७,
2. 'Tbe Moghal Emperors were indebted for half their conquest to the 'Laklı Tarwar
Ratboran,' the 1,00,000 swords of the Rathors ( Annals and Antiquities of
Rajsthan (edited by IV.Crooke), Vol. I, Pp 105-106. ३. जोधपुर नरेशों के प्रताप और वीरता का पूरा-पूरा विवरण उनके इतिहास में यथास्थान
मिलेगा। ४. दफ्तर २, पृ० १६२ ५. 'अकबरनामा', दफ्तर २, पृ. ३२०-३२१,
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