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जोधपुर के राष्ट्रकूट नरेशों और उनके वंशजों का प्रताप राव मालदेवजी के पुत्र राव चन्द्रसेनजी के विषय में किसी कवि ने लिखा है:
"अणदगिया तुरी ऊजला असमर, चाकर रहण न डिगियौ चीत । ___ सारे हिन्दुस्थान तणे सिर पातल नै चन्द्रसेण प्रवीत । अर्थात्-उस समय महाराणा प्रताप और राव चन्द्रसेन दोनों ने न तो शाही अधीनता ही स्वीकार की और न अपने घोड़ों पर शाही निशान का दाग ही लगवाया ।
इसके अलावा स्वयं महाराणा प्रताप ने भी राव चन्द्रसेन द्वारा अंगीकृत मार्ग का ही ( दस वर्ष बाद ) अनुसरण किया था ।
"आलमगीर नामे" में महाराजा जसवंतसिंहजी प्रथम को “रुक्के रकीने दौलत व सितूने कवीमें सल्तनत" ( अर्थात्-रौब-दाब में सबसे बढ़कर और बादशाही सल्तनत का स्तंभ ) लिखा है ।
"मासिरुल उमरा" में महाराजा जसवन्तसिंहजी को फ़ौज और सामान की अधिकता से हिन्दुस्तान के राजाओं में सबसे बड़ा बतलाया है।
इन महाराजा ने औरंगजेब के समय ही बहुत सी मसजिदें गिरवाकर उनके स्थान पर मन्दिर बनवा दिए थे । महाराजा जसवन्तसिंहजी के जीते जी बादशाह औरंगजेब की हिम्मत हिन्दुओं पर 'जजिया' लगाने की नहीं हुई । इसीसे इनके मरने पर उसने फिर से 'जज़िया' लगाया था।
जोधपुर-नरेश महाराजा अजितसिंहजी ने सैय्यद भ्राताओं से मिलकर बादशाह फ़र्रुखसीयर को मरवा डाला, और फिर क्रमशः तीन बादशाहों को देहली के तहत पर बिठाया ।
राठोड़ वीर दुर्गादास की कुशलता और वीरता की प्रसिद्धि आज तक चली आती है।
महाराजा रामसिंहजी की राठोड़ वाहिनी ने सम्मुख-रण में प्रवृत्त अपने शत्रु 'अमीरुल उमरा' ( जुल्फिकार जंग ) की सेना को मौके पर पानी पिलाकर अपनी उदारता का परिचय दिया था ।
१. पृ० ३२ २. जिल्द ३, पृ० ६०३ ३. सरकार लिखित-हिस्ट्री ऑफ़ औरंगज़ेब, भाग ३ पृ० ३६८-३६६ ४. वी० ए० स्मिथ की-ऑक्सफोर्ड हिस्ट्री ऑफ इण्डिया, पृ० ४३८ ५. सहरुल मुताखरीन, भाग ३, पृ. ८८५
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