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मारवाड़ का इतिहास
जोधपुर के राष्ट्रकूट नरेशों और उनके वंशजों का प्रताप इस इतिहास के प्रथम खण्ड में पहले के राष्ट्रकूट नरेशों के प्रताप के विषय में, उनकी प्रशस्तियों और समकालीन लेखकों की पुस्तकों से, प्रमाण उद्धृत किए जा चुके हैं; इसलिये यहां पर राव सीहाजी के वंशजों के प्रताप के विषय में कुछ प्रमाण दिए जाते हैं।
वि० सं० १५६१ के महाराणा रायमल्ल के घोसूंडी ( मेवाड़ ) से मिले लेख में लिखा है:
"श्रीयोधक्षितिपतिरुनखड्गधारानिर्घातप्रहतपठानपारशीकः ॥ ५ ॥
पूर्वानतासीद्गयया विमुक्तया काश्यां सुवर्णैर्विपुलैर्विपश्चितः । अर्थात्-राव जोधाजी ने अपनी तलवार से पठानों और पर्शियावालों (मुसलमानों) को हराया, और गया के यात्रियों पर लगनेवाला कर छुड़वाकर अपने पूर्वजों को और काशी में बहुतसा सुवर्ण दान कर विद्वानों को तृप्त किया ।
फरिश्ता ( मुहम्मद कासिम ) ने वि० सं० १६७१ के करीब 'तारीख फरिश्ता' नामक इतिहास लिखा था। उस में लिखा है कि जोधपुर के राव मालदेव के साथ के युद्ध में स्वयं बादशाह शेरशाह ने कहाः
"खुदाका शुक्र है कि, किसी तरह फतह हासिल हो गई, वरना मैंने एक मुट्ठी भर बाजरे के लिये हिन्दुस्तान की बादशाहत ही खोई थी।"
“अकबर नामा " नामक इतिहास में राव मालदेवजी को हिन्दुस्तान के तमाम दूसरे रावों और राजाओं से बड़ा लिखा है, और "तुजुक जहांगिरी" में उन्हें सेना और राज्य की विशालता में महाराणा सांगा ( संग्रामसिंह ) से भी बड़ा बतलाया है। राव मालदेवजी की सेना में ८०,००० सिपाही थे ।
१. जर्नल बंगाल एशियाटिक सोसाइटी, भा० ५६, अङ्क १, नं० २ २. ( जिल्द १, मिकाला २, पेज २२८) ३. जिल्द २, पेज १६०, ४. दिबाचा ( भूमिका ), पेज ७,
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