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मारवाड़ का इतिहास
थीं और उन्हीं के एक हमले में साँभर का चौहान राजा दुर्लभराज मारा गया था । परन्तु उस का वंशज जयदेव और उसका पुत्र अर्णोराज इन आक्रमण-कारियों को मार भगाने में समर्थ हुए । अर्णोराज का छोटा पुत्र विग्रहराज ( वीसलदेव ) चतुर्थ था । देहली के अशोक के स्तंभ पर ( जिसको फ़ीरोज़शाह की लाट कहते हैं ) इसका वि० सं० १२२० ( ई० स० ११६३ ) का एक लेख खुदा है। उससे ज्ञात होता है कि इसने आर्यावर्त से मुसलमानों को भगा दिया था । उस समय तक तो इधर की तरफ़ मुसलमानों के पैर नहीं जमे और वे लूट-मारकर के ही लौटते रहे । परंतु उसके बाद सुलतान शहाबुद्दीन के आक्रमण शुरू हुए। पहले पहल मारवाड़ में नाडोल पर उसका हमला हुआ । परंतु उसमें उसे सफलता नहीं मिली । वि० सं० १२४७ ( ई० स० ११११ ) में उसका और अजमेर के चौहान पृथ्वीराज का पहला युद्ध हुआ । इसमें उसे बुरी तरह से घायल होकर भागना पड़ा । इस पर वि० सं० १२४६ ( ई० स० ११९२ ) में उस ( शहाबुद्दीन ) ने पहली हार का बदला लेने के लिये दूसरी बार पृथ्वीराज पर चढ़ाई की । उस समय आपस की फूट के कारण पृथ्वीराज मारा गया और अजमेर, सवालक आदि पर मुसलमानों का अधिकार हो गया । तथा वहाँवाले उनको कर देने लगे । वि० सं० १२५२ ( ई० स० ११६५ ) में कुतुबुद्दीन ने पृथ्वीराज के भाई हरिराज से अजमेर छीनकर वहाँ पर पूरी तौर से अधिकार कर लिया । इसी वर्ष गुजरात के सोलंकी भीमदेव ने मेरों की सहायता से कई महीनों तक कुतुबुद्दीन को अजमेर में घेरे रक्खा । अंत में गज़नी से नई सेना के आ जाने पर घिराव उठाना पड़ा । इसके बाद शहाबुद्दीन ने गुजरात पर चढ़ाई की । परंतु इसमें उसे घायल होकर लौटना पड़ा । इसीके दूसरे वर्ष ( वि० सं० १२५३ में ) इस हार का बदला लेने के लिये उस ( कुतुबुद्दीन ) ने दुबारा चढ़ाई कर गुजरात को लूटा । इस बार विजय उसके हाथ रही । ये दोनों युद्ध कायद्रां में (आबू के पास ) हुए थे । इस पिछली चढाई उसकी सेना अजमेर से नाडोल और पाली ( बाली ? ) की तरफ़ होती हुई गई थी, और वहाँ के लोग उसके डर से क़िले खाली कर भाग खड़े हुए थे ।
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में
१. यदि दुर्लभराज को दुर्लभराज प्रथम मानें तो यह जुनैद का समकालीन होता है; और यदि इसे दुर्लभ तृतीय मानें तो इस घटना का ग़ज़नी के खुसरो या उसके पुत्र खुसरो मल्लिक के समय होना पाया जाता है ।
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