Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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४२ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय
ग्रंथों को कलापूर्ण ढंग से लिपिबद्ध किया । आपके जीवन की सर्वाधिक विशेषता यह थी कि आप निरंतर श्रुतसाधना में निमग्न रहते थे. जीवन में सदैव अप्रमत्त भाव की उपासना में लीन रहे. एक मिनट भी व्यर्थ खोना आपको इष्ट नहीं था. यही कारण है कि आपके लिखित ग्रंथ आज भी विपुल मात्रा में पाए जाते हैं. परवर्ती अनेक विद्वान् सन्त-सतियों ने आपके परिचय एवं प्रशस्ति के रूप में पद्य-रचना की है
सुन्दराक्षरसंयुक्त-शास्त्र-लेखन-तत्परम् ,
बुधमल्लं-महाराज वन्दे भक्तिपुरस्सरम् । आपने ३२ आगमों की अनेक बार प्रतिलिपियाँ मनोयोगपूर्वक की थीं. आज भी आप द्वारा लिखित ग्रंथ स्थान-स्थान पर खोज करने पर पाए जाते हैं. ज्ञानाराधना में अत्यंत निरत रहते हुए आप संयमसाधना में भी आस्थावान् थे. संयम का अत्यंत दृढ़तापूर्वक आपने पालन किया. सं० १९२६ वैशाख शुक्ला दशमी के दिन नागौर नगर में विधिवत् संलेखना करके स्वर्गवासी हुये.
स्वामी श्रीफकीरचन्द्रजी महाराज
आप स्वामी श्रीबुधमलजी म० के एकमात्र विद्वान् शिष्य थे. आपका जन्म जोधपुर समीपस्थ विसलपुर ग्राम में हुआ था. माता कुन्दना के अंगजात और पिता श्रीनरसिंहदासजी के आत्मज थे, आपके एक छोटे भाई थे जो इसी गच्छ में आचार्य कस्तूरचन्द्र जी म० के नाम से विख्यात थे. पुत्रों और पत्नी को असमय में ही त्याग कर थीनरसिंहदासजी स्वर्गवासी हुए. आपके पूरे परिवार ने, जिसमें पत्नी भी सम्मिलित थीं, जिन धर्म की दीक्षा धारण की. स्वामीजी की अध्यवसायशील प्रकृति के बारे में लिखे गये अनेक पदों में से एक इस प्रकार है
विनय करी गुरुदेव रिझावी, भण्या अंग सारा, छेद मूल उपांग पइन्ना लिया कंठ-धारा । व्याकरण छंद ज्योतिष स्वरोदय और वेद म्यारा,
पुराण कुरान ने डिंगल पिंगल, न्याय नाममाला । जैनागमों के अंग उपांग आदि का सूक्ष्म मनन किया. आगमों के अतिरिक्त अन्य धर्मों के ग्रन्यों का भी गहन अध्ययन किया. आपका व्याकरण संबंधी ज्ञान गंभीर मूल्यवान् था. आप संस्कृत के उद्भट विद्वान् थे. यही कारण है कि आपके पास अन्य सम्प्रदायों के सन्त भी अध्ययन करने में गौरव का अनुभव करते थे. मूर्तिपूजक श्वेताम्बर सम्प्रदाय के प्रसिद्ध आचार्य श्रीविजयानन्दजी सूरि (आत्मारामजी) ने सम्प्रदाय परिवर्तन कर लेने के पश्चात् भी आपकी विशिष्ट विद्वत्ता की ख्याति से प्रभावित व आकृष्ट होकर व्याकरण आदि का अध्ययन किया था. सौराष्ट्र के प्रसिद्ध सन्त तपस्वी श्री माणकचन्दजी राजस्थान में आये और आपके निकट लगभग दो वर्ष तक रहकर व्याकरण आदि का अध्ययन करते रहे, तपस्वी श्रीमाणकचन्द्रजी म० के गुर्जर भाषा में प्रकाशित बृहद् जीवन-चरित्र में स्वामी श्रीफकीरचन्द्रजी म० की अद्वितीय विद्वत्ता के बारे में पर्याप्त विस्तार से उल्लेख किया गया है. आप प्रखर तार्किक और उद्भट चर्चावादी भी थे. किंतु आपकी तत्त्वचर्चा कभी मनोमालिन्य का कारण नहीं बनी. तत्त्वचर्चा, तर्क और प्रमाणों के आधार पर बड़ी कुशल व तर्कसंगत करते थे. तेरापंथी (जैनों की एक उपशाखा) सम्प्रदाय के मुनियों के साथ भी आपने तत्त्वचर्चा अपने समय में की थी. तेरापंथियों के गढ़ लाडनू में वर्षावास करना प्रबल
१. किशनगढ़ आदि स्थानों में.
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