Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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४० : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय
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ज्ञातव्य यह है कि आचार्य जयमल जी म० के पट्ट पर आसीन होनेवाले सभी आचार्य अविवाहित थे. किसी का वाग्दान होने वाला था तो किसी का वाग्दान हो चुका था और उन्होंने मुनि दीक्षा ग्रहण कर ली थी. प्रारंभ के तीन आचार्यों के अतिरिक्त सभी आचार्य बाल्यावस्था में दीक्षित हुए थे. किस आत्मा में कितनी तेजस्विता छुपी हुई है, यह उसके बालरूप को देखकर अनुमान करना असंभव लगता है. आरम्भ में साधारण प्रतीत होनेवाले इन तेजस्वी सन्तों ने बड़ी शान के साथ अपनी पावन परम्परा का निर्वाह किया और जिनशासन को जन-जन तक पहुँचाने में महत्त्वपूर्ण योग प्रदान किया है. यह इस सम्प्रदाय की अपनी एक मौलिक विशेषता रही है.
विक्रम संवत् १९८५ में आचार्य श्रीकानमल जी महाराज के स्वर्गवास के पश्चात् सं० १९८६ में मारवाड़ के प्रसिद्ध नगर पाली में छह सम्प्रदायों के मुनिवरों का एक सम्मेलन आयोजित हुआ. उसमें इस सम्प्रदाय की सुव्यवस्था के लिए श्रद्धेय मुनि श्रीहजारीमल जी महाराज को प्रवर्तक-पद प्रदान किया गया और स्वामी जी श्रीचौथमल जी मंत्री पद पर आसीन किये गये. कुछ समय तक यह व्यवस्था चालू रही, किंतु सम्प्रदाय के प्रमुख विचारशील सज्जनों का विचार था कि जब सम्प्रदाय में विद्वान् मुनिराज विद्यमान हैं तो फिर आचार्य-पद की रिक्तता की पूत्ति क्यों न की जाय ? तदनुसार उनका प्रयास प्रारम्भ हुआ और वि० सं० २००४ में नागौर नगर में श्रमणसंघीय प्रान्तमंत्री पं० २० मुनि श्रीमिश्रीमल जी म० (मधुकर) भारी समारोह के साथ नौवें आचार्य के पद पर प्रतिष्ठित किये गये और श्री आचार्य जसवन्तमल जी म. नाम से अभिहित किये गए. सम्प्रदाय के इतिहास में संस्कृत-प्राकृत आदि भाषाओं तथा व्याकरण, साहित्य एवं दर्शनशास्त्र आदि के विशिष्ट ज्ञाता विद्वान् का नेतृत्व पद पर आना एक नवीन घटना थी. आपके नेतृत्व में सम्प्रदाय का विशेष उत्कर्ष होगा, ऐसी आशा थी. किंतु परिस्थितियाँ कुछ ऐसी निर्मित हुई कि आचार्य श्रीजसवन्तमलजी म० की शांतिप्रिय एवं साधनाशील प्रकृति ने आचार्य-पद पर न रहने का निर्णय किया. अनेकानेक सन्तों एवं श्रावकों के अनुनय-विनय को भी ठुकरा कर आपने पद त्याग कर दिया. तत्पश्चात् वही प्रवर्तकपरम्परा पुनः प्रचलित हुई. वि० सं० २००६ में सादड़ी (मारवाड़) में अखिल भारतीय स्था० मुनियों का बृहत् सम्मेलन हुआ, जिसके सर्वसम्मत निर्णयानुसार अन्य सम्प्रदायों के साथ इस सम्प्रदाय का भी श्रमणसंघ में विलीनीकरण हो गया.
--संपादक
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