Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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स्वामीजी का वंश परिचय
स्वामी श्रीमलजी म०
आचार्य श्रीजयमल्लजी म०' के ५१ शिष्य होने का उल्लेख मिलता है. उनके १६ शिष्यों के नाम भी पाए जाते हैं. स्वामी श्रीगोरधनजी म० आचार्यश्री के ज्येष्ठ शिष्य थे. मुनि श्रीरायचन्द्रजी आपके प्रतिभावान् तार्किक व चर्चावादी शिष्य थे. आपको संघ द्वारा जयगच्छ का आचार्य पद प्रदान किया गया था. आप द्वितीय आचार्य थे. अपने समय के ज्योतिस्तंभ थे. आपके ५ शिष्य हुये. प्रधान शिष्य श्रीआसकरणजी थे. आचार्य रायचन्द्रजी के बाद आप तीसरे आचार्य हुए. आपके १० शिष्य थे. श्रीबुधमलजी म० पांचवें शिष्य माने जाते थे.
स्वामी श्रीमलजी म० का जन्म जोधपुर समीपस्थ तुषार ग्राम में हुआ था. माता पन्ना और पिता श्रीकरचन्द्रजी थे. आपके माता-पिता व स्वयं इस प्रकार तीनों ने भागवती दीक्षा धारण की थी. आपकी स्तुति व प्रशस्ति में कवियों ने जो पद्य रचना की है उसमें आपके माता-पिता और स्वयं आपके दीक्षित होने का विस्तार से उल्लेख पाया जाता है. आपके ही शिष्य स्वामी श्रीफकीरचन्द्रजी म० के उल्लेखानुसार जोधपुर के राजा मानसिंहजी और नवाब मीरखान में युद्ध हुआ. ग्राम में जीवन की सुरक्षा में सन्देह उत्पन्न होने लगा. श्रीकपूरचन्द्र जी सपरिवार जुगार से जोधपुर आगये. दोनों भूपतियों में संघर्ष छिड़ा हुआ था. एक दिन मीरखान पक्ष की ओर से चलाया गया तोप गोला पन्नाजी के बराबर से गुजरा. पन्नाजी को शारीरिक हानि तो नहीं हुई, केवल उनके वस्त्र भुलस गये. यह गोला श्रीपन्नाजी के वैराग्य में निमित्त बन गया. जयगच्छीय श्रीगीगाजी साध्वी के पास पन्नाजीने जयपुर में दीक्षा धारण कर ली. श्रीकपूरचन्द्रजी का मन भी निर्वेद में ढल गया, साथ ही पुत्र का भी.
आचार्य श्री आसकरणजी म० उन दिनों जोधपुर में विराजमान थे. पिता-पुत्र आचार्यश्री की ने पिता-पुत्र के वैराग्य- मूलक मन की गहराई नापी और दोनों को सं० १८६९ की पौष (जोधपुर) में दीक्षा प्रदान की. दीक्षानंतर स्वामी श्री बुधमलजी ने जैनागमों का अध्ययन किया. पहले जैसी परंपरा थी तदनुसार जैनागमों व अन्य
१. स्वामीजी के वंशपरिचय के प्रसंग में आ० जयमल्लजी, आ० रायचन्द्रजी, आ० आसकरणजी का परिचय आवश्यक है. यह अन्यत्र आचार्य परंपरा में दिया जा चुका है. अतः यहां स्वामी बुधमलजी म० से हजारीमलजी तक के अतीत परिवार का परिचय प्रस्तुत किया गया है.
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सेवा में पहुँचे. आचार्यश्री शुक्ला षष्ठी को महामंदिर
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